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कुछ लोगों को देश का गौरवगान भी अच्छा नहीं लगता ।

By MPHE Aug 25, 2023
कुछ लोगों को देश का गौरवगान भी अच्छा नहीं लगता ।
कुछ लोगों को देश का गौरवगान भी अच्छा नहीं लगता ।

चंद्रयान 3 की सफलता पर पूरा देश गौरवान्वित हुआ। इसरो के वैज्ञानिकों ने बीते अनेक वर्षों तक अथक परिश्रम करते हुए भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी विश्व शक्तियों के समक्ष ला खड़ा किया।चंद्रमा के जिस क्षेत्र में चंद्रयान उतरा उससे अब तक अंतरिक्ष वैज्ञानिक अपरिचित थे । इसलिए यह दुस्साहसिक प्रयास था । लेकिन 23 अगस्त की शाम भारत में उल्लास का अभूतपूर्व सूर्योदय लेकर आई जब चंद्रयान ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर धरातल को छू लिया । उसके साथ भेजा गया प्रज्ञान नामक वाहन भी चंद्रमा की धरती पर चहलकदमी करने लगा जिसका काम वहां की भौगोलिक और वातावरण संबंधी जानकारी इसरो को भेजना है। हालांकि ये अभियान महज दो सप्ताह का है, लेकिन इसकी सफलता ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में हमें वैश्विक दर्जा दिला दिया जो कम महत्वपूर्ण नहीं है। इस सफलता से उत्साहित इसरो ने तत्काल सूर्य की कक्षा में भेजे जाने वाले आदित्य नामक अभियान की भी घोषणा कर दी। चंद्रयान के चंद्रमा पर उतरने का वीडियो अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा प्रसारित किया जाना जताता है कि ये अभियान कितना महत्वपूर्ण था। पूरी दुनिया में इसे भारतीय वैज्ञानिकों के शानदार कारनामे के तौर पर देखा गया किंतु हमारे देश में कुछ लोग हैं जिन्हें देश का गौरवगान अच्छा नहीं लग रहा। किसी को प्रधानमंत्री द्वारा दक्षिण अफ्रीका से वैज्ञानिकों को बधाई देने के साथ ही पूरी दुनिया को अंतरिक्ष में भारत की ऊंची छलांग का ब्यौरा देने पर ऐतराज है तो कुछ इस बात को प्रचारित करने में जुट गए कि इसरो की स्थापना किसने और कब की । एक तबका ऐसा भी है जिसे लग रहा है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर लुटाया जा रहा धन पानी में पैसे फेंकने जैसा है। ये लोग अपनी बात के समर्थन में दावा कर रहे हैं कि जिन देशों ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर अनाप – शनाप धन खर्च किया , उन्हें उससे कुछ हासिल नहीं हो सका क्योंकि पृथ्वी से लाखों – करोड़ों किलोमीटर दूर स्थित किसी ग्रह पर काबिज होने के बाद भी वहां रहना संभव नहीं है। एक यू ट्यूबर पत्रकार गत रात्रि इस बात का हिसाब देते रहे कि चंद्रयान पर हुए खर्च से ज्यादा तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर व्यय होता है। यद्यपि एक वर्ग ऐसा है जिसने इस बात की जरूरत जताई कि इसरो सरीखे संगठनों को दिया जाने वाला बजट और बढ़ना चाहिए। लंबे समय से वहां वेतन नहीं मिलने की बात भी उछली। देश में शोध और विकास ( रिसर्च एंड डेवलपमेंट ) पर कम ध्यान दिए जाने की बात भी जोरदार तरीके से उठी। टीवी चैनलों में चंद्रयान के सफल आरोहण पर आयोजित चर्चा में बजाय वैज्ञानिकों के राजनीतिक नेताओं को बिठाए जाने पर भी बहुतों ने एतराज किया। और ये बात सही भी है क्योंकि नेताओं का पूरा जोर वैज्ञानिकों द्वारा अर्जित सफलता का श्रेय लूटने पर केंद्रित रहा। कुछ लोगों ने इस उपलब्धि का ये कहकर मजाक भी उड़ाया कि अमेरिका तो 50 साल पहले ही अपने अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर उतार चुका था और हम महज एक यान के वहां पहुंचाकर फूले नहीं समा रहे। कुल मिलाकर देखने पर पता चलता है कि राष्ट्रीय गौरव के विषयों पर भी हम एक सुर में बोलना भूलते जा रहे हैं। गनीमत ये रही कि सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक किए जाने के प्रमाण मांगने वाले चंद्रयान के सफल आरोहण का प्रमाण मांगने की हिम्मत नहीं कर सके किंतु अभियान की सफलता का श्रेय लूटने के अलावा उसकी उपयोगिता और सार्थकता पर जिस तरह से सवाल उठाए गए वह शुभ संकेत नहीं है क्योंकि इससे दुनिया में हमारी छवि खराब होती है। जिस तरह खेलों में किसी खिलाड़ी अथवा टीम के जीतने पर पूरा देश उसको बधाई देकर प्रोत्साहित करता है ठीक वैसे ही वैज्ञानिकों की उपलब्धि पर उनकी हौसला अफजाई सामूहिक तौर पर होना चाहिए थी। वैसे भी यदि अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपादेयता और उपलब्धियों के बारे में उसी क्षेत्र के जानकार अपनी राय व्यक्त करें तो वह बेहतर होता है। लेकिन विज्ञान के बारे में जानकारी न रखने वाले भी जब ऐसे मामलों में अपना ज्ञान बघारकर उपदेश देने लगते हैं तो दुख होता है। कुछ लोगों को तो इसरो प्रमुख सहित कुछ वैज्ञानिकों के तिरुपति देवस्थानम जाकर प्रार्थना किए जाने पर भी आपत्ति हुई। लेकिन उक्त अभियान के प्रमुख सोमनाथन द्वारा वेदों को विज्ञान के स्रोत के तौर स्वीकार कर ऐसे लोगों को करारा जवाब दे दिया गया। चंद्रयान 3 की सफलता के लिए श्रेय के अधिकारी यदि हैं तो केवल वे वैज्ञानिक जो अनेक वर्षों से इस अभियान को अपने जीवन का मिशन मानकर जुटे रहे। इस सफलता ने भारत का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया है। इस पर खर्च हुई राशि ऐसे ही अभियानों पर अन्य देशों द्वारा किए गए खर्च से कम होने से अपने उपग्रह छोड़ने के इच्छुक तमाम देश अब इसरो की सेवा लेने आतुर हैं। इससे इस संगठन की आय भी बढ़ेगी और भविष्य में वह आत्मनिर्भर हो सकेगा। सर्वविदित है कि अमेरिका की असली ताकत विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में की जाने वाली रिसर्च ही है। ऐसे में इसरो द्वारा अंतरिक्ष में किए जाने वाले शोध और अध्ययन भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक होंगे ये बात उन सभी को समझनी चाहिए जो चंद्रयान 3 की सफलता पर खुश होने के बजाय वैज्ञानिकों की उपलब्धि को कमतर साबित करने का प्रयास कर रहे हैं।

By MPHE

Senior Editor

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