संपादकीय – रवीन्द्र वाजपेयी
बीते शनिवार को फिलिस्तीन समर्थक हमास नामक उग्रवादी लड़ाकों द्वारा इजरायल पर जिस तरह का भीषण हमला किया गया उससे पूरी दुनिया थर्रा उठी। वैसे इस इलाके में बीते सात दशक से भी ज्यादा युद्ध के हालात स्थायी रूप से बने हुए हैं। हालांकि इजरायल ने अपनी वायु और थल सीमा को पूरी तरह से अभेद्य बना लिया था किंतु हमास ने हजारों राकेट छोड़कर उसकी आकाशीय रक्षा प्रणाली को तो ध्वस्त किया ही , थल सीमा पर बनी दीवारें बुलडोजरों से गिराकर मारकाट मचा दी। पैरा ग्लाइडर से भी उसके लड़ाके इजरायल में प्रविष्ट हो गए। हमला इतना आकस्मिक और सुनियोजित था कि किसी को कुछ समझ में ही नहीं आया । सैकड़ों लोग मारे गए और बड़ी संख्या में इजरायली और अन्य देशों के लोगों को बंधक बनाकर ले जाया गया। यद्यपि हमास के साथ इजरायल की झड़प होती रहती है लेकिन ये तो सीधा – सीधा युद्ध ही है और इसीलिए इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने बिना देर लगाए जवाबी कार्रवाई के आदेश दिए और कुछ घंटों के भीतर ही लड़ाई का केंद्र इजरायल से हटकर हमास के कब्जे वाले गाजा पट्टी में स्थानांतरित हो गया। बीते दो दिनों से इजरायल ने जो रौद्र रूप दिखाया उसके कारण पूरी गाजा पट्टी में बरबादी का आलम है। लाखों लोग पलायन करने मजबूर हैं। महज 365 वर्ग कि.मी आकार के इस क्षेत्र में लगभग 21 लाख लोग रहते हैं। जो दुनिया की सबसे घनी रिहायश है। गाजा के पीछे समुद्र होने से वहां के लोगों के लिए बचाव का एकमात्र रास्ता मिस्र से लगी सीमा ही है । इजरायल ने लंबे समय से गाजा की घेराबंदी कर रखी है जहां चुनाव के जरिए काबिज हुए हमास ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया खत्म कर दी। उसे ईरान और मिस्र सहित कुछ मुस्लिम देश आर्थिक और सैन्य सहायता देते हैं । लेकिन जो लड़ाई फिलहाल चला रही है उसकी शुरुआत जिस धमाकेदार अंदाज में हमास द्वारा की गई उससे लगता है उस पर किसी बड़ी ताकत का हाथ है जो चीन या रूस भी हो सकते हैं। हमले के समय का सामरिक से ज्यादा कूटनीतिक महत्व है क्योंकि मुस्लिम जगत का मुखिया माने जाने वाले सऊदी अरब ने इजरायल के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए उसे मान्यता देने का निर्णय कर लिया था । लेकिन ईरान को ये दोस्ती रास नहीं आ रही थी। संभवतः हमास को उसी ने आक्रमण हेतु उकसाया और मदद भी की जिससे इजरायल की तरफ झुक रहे अरब देशों के बढ़ते कदम रुक जाएं। संयुक्त अरब अमीरात के अलावा ज्यादातर मुस्लिम देश हमास के पक्ष में नजर आ रहे हैं। सऊदी अरब को भी फिलिस्तीनियों का समर्थन करना पड़ रहा है। यद्यपि उसने और तुर्किए ने सुलह के लिए मध्यस्थता की पेशकश भी की है किंतु इजरायल शुरुआती झटका खाने के बाद जिस तरह से गाजा पर कब्जे का इरादा जताते हुए भीषण हमले कर रहा है उसके कारण पूरा इलाका खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। उसने वहां रहने वालों की बिजली , पानी और भोजन सामग्री की आपूर्ति रोक दी है। इसे अमानवीय भी कहा जा सकता है किंतु इजरायल की ये बात गौरतलब है कि जैसा दुश्मन ही वैसा ही व्यवहार उसके साथ किया जावेगा। आगे आने वाले 50 सालों तक न भूलने वाला सबक देने की जो धमकी नेतन्याहू ने दी है वह कार्यरूप में बदलती दिखने लगी है। हमास ने इजरायली गुप्तचर एजेंसी मोसाद के साथ उसकी आकाशीय रक्षा प्रणाली को भेदने में तो सफलता हासिल कर पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया लेकिन दो दिन बाद ही उसके पैर उखड़ने लगे हैं । सर्वविदित है इजरायल अपने शत्रुओं से निपटने में किसी भी तरह का रहम नहीं करता । यही कारण है कि दुश्मनों से घिरा होने के बाद भी छोटा सा यह देश मुस्तैदी से टिका हुआ है। उसकी असली ताकत इजरायली जनता में देश के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की भावना है । हमास का हमला इजरायल की गुप्तचर एजेंसी , सेना और सरकार तीनों की विफलता मानी जा रही है। नेतन्याहू के विरुद्ध काफी समय से चल रहे जनांदोलन के कारण राजनीतिक अस्थिरता भी बनी हुई थी। बावजूद इसके हमला होते ही पूरा देश एकजुट हो गया। सेना में रहे हुए एक पूर्व प्रधानमंत्री ने तत्काल सेना में जाकर कार्य शुरू कर दिया। नौजवान सेना में शामिल होने भर्ती दफ्तरों के सामने जमा हो गए। विपक्ष ने सरकार के विरुद्ध एक शब्द तक नहीं कहा और हमास के विरुद्ध कार्रवाई में उसके साथ खड़ा हुआ है। भारत ने भी जिस तरह इजरायल के साथ खड़े होने का साहस दिखाया वह हमारी विदेश नीति का बेहद साहसिक पक्ष है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अतीत में संकट के समय इजरायल द्वारा दी गई सहायता के बदले उसको समर्थन देकर ये संकेत दे दिया कि भारत दबाव से बाहर आकर अपने विशुद्ध राष्ट्रीय हितों के प्रति जागरूक है। इस लड़ाई का अंत क्या होगा ये तो कहना कठिन है क्योंकि फिलीस्तीन और इजरायल दोनों में सांप – नेवले जैसी जन्मजात दुश्मनी है किंतु इसकी वजह से दुनिया का संकट और बढ़ गया है। विशेष तौर पर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आना तय है जिसका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा। बहरहाल , इजरायल कहां जाकर रुकेगा ये देखने वाली बात है क्योंकि हमास को जो करना था वह कर चुका है । ईरान और मिस्र जैसे देशों के बहकावे में आकर उसने शेर की सवारी तो कर ली किंतु उस पर से उतरना उसके लिए आत्मघाती साबित होगा।