लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। राजनीतिक दलों द्वारा वायदों की झड़ी लगाई जा रही है। आजकल इनको गारंटियां कहा जाने लगा है। हर नेता अपनी गारंटी पूरी होने की गारंटी देता फिर रहा है। कोई नगद बांटने की बात कह रहा है तो कोई नौकरी का आश्वासन देकर मतदाताओं को लुभाने में जुटा है। जो माँगोगे उससे ज्यादा मिलेगा वाला माहौल है। ऐसे में मतदाता उसी तरह भ्रमित हैं जैसे किसी शापिंग मॉल में चारों तरफ लगे डिस्काउंट सेल के इश्तहार देखकर होता है। लेकिन आसमान से तारे तोड़कर लाने के वायदों के इस मौसम में आई एक खबर ने हर उस व्यक्ति को परेशान कर दिया जिसे अपने साथ -साथ अपनी संतानों के भविष्य की भी चिंता है। दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद अब ये दावा किया जा रहा है कि भारत जल्द ही तीसरे क्रमांक पर आने वाला है। इसके संकेत भी मिलने लगे हैं किंतु यह गौरव हासिल होने के पहले भारत को दुनिया का तीसरे सबसे प्रदूषित देश घोषित हो गया । विश्व के सबसे प्रदूषित 50 शहरों में से 42 हमारे यहाँ के हैं । सबसे अधिक शर्मिंदगी की बात ये है कि जी -20 जैसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी करने वाली दिल्ली सबसे प्रदूषित राजधानी घोषित हुई है। हालांकि प्रदूषण के मापदंडों पर पाकिस्तान पहले और बांग्लादेश दूसरे स्थान पर है। सबसे दुखदायी आंकड़ा ये है कि भारत की 96 फीसदी आबादी की साँसों में प्रदूषित हवा प्रवाहित हो रही है। प्रधानमंत्री बनने के बाद ही नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान का शुभारंभ किया था।। इसके अंतर्गत शहरों के बीच स्वच्छता प्रतिस्पर्धा रखी जाने लगी। प्रतिवर्ष सर्वेक्षण के उपरांत परिणाम घोषित किये जाते हैं। शुरुआत में इस अभियान को लेकर प्रधानमंत्री का उपहास भी उड़ाया गया। राहुल गाँधी ने तो यहाँ तक कहा कि जिन युवाओं के हाथों को काम देना था उनको प्रधानमंत्री ने झाड़ू पकड़ा दी। यद्यपि उस अभियान से जन – जागरूकता बढ़ी है किंतु ये कहना भी गलत नहीं होगा कि स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपेक्षित गंभीरता का अभाव है। ऐसे में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ऐसे मुद्दे राजनीतिक विमर्श में शामिल क्यों नहीं होते ? पंजाब के किसान जो पराली जलाते हैं उसकी वजह से दिल्ली सहित समीपवर्ती बड़े इलाके पर धुएं की चादर बिछ जाती है। सर्वोच्च न्यायालय तक इस मामले में सख्ती दिखा चुका है। आम आदमी पार्टी जब दिल्ली की सत्ता में आई तब वह पराली के लिए पंजाब को कसूरवार ठहराया करती थी किंतु जैसे ही वहाँ सरकार बनी उसकी शिकायत खत्म हो गई। आजकल चुनाव में सभी पार्टियां मुफ्त बिजली, पानी , इलाज़ जैसे वायदे करती हैं। इनके बल पर चुनाव जीते भी जाते हैं। लेकिन कोई भी पार्टी प्रदूषण को पूरी तरह समाप्त करने की गारंटी नहीं देती जबकि यह भी विकास का पैमाना होना चाहिए। दरअसल शुद्ध हवा और शुद्ध पानी जैसे विषय चुनाव घोषणापत्र में इसलिए शामिल नहीं होते क्योंकि जनता इन्हें लेकर उदासीन है। इसी के चलते प्रतिदिन अरबों रुपयों का बोतल बंद पानी बिकता है। इसके अलावा पानी के पाउच एवं जार का कारोबार भी आसमान छू रहा है। हालांकि इस पानी की गुणवत्ता भी संदिग्ध रहती है। प्रदूषण दूर करने के लिए सरकार अपने स्तर पर कुछ – कुछ करती है। न्यायपालिका भी समय – समय पर सख्ती दिखाया करती है किंतु जब तक आम जनता जागरूक नहीं होगी , हालात सुधरने की उम्मीद करना व्यर्थ है। आदर्श स्थिति तो वह होगी जब जनता की तरफ से शुद्ध हवा की मांग उठे, साथ ही इस दिशा में जो भी नियम – कानून बनें उनका पालन करने की स्वप्रेरित इच्छा समाज में जाग्रत हो। आर्थिक विकास के साथ औद्योगिकीकरण भी आता है जो प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है। इसी तरह अधो – संरचना के कार्यों में पर्यावरण को क्षति पहुंचाई जाती है। समय की मांग है इस बारे में नई सोच विकसित की जाए ताकि दुनिया के विकसित देशों की कतार में शामिल होने के साथ ही भारत एक स्वच्छ और प्रदूषण रहित देश के रूप में भी जाना जाए। जिस तरह विकास दर के मामले में हम चीन को अपना प्रतिद्वंदी मानते हैं वैसी ही प्रतिस्पर्धा प्रदूषण मुक्त होने के लिए न्यूजीलैंड और फिनलैंड जैसे देशों से की जानी चाहिए। देखना ये है कि कोई पार्टी इसे अपने घोषणापत्र या गारंटी में शामिल करती है या नहीं?