विश्वविख्यात क्रिकेट कमेंटेटर, उद्घोषक और वरिष्ठ साहित्यकार मुरली मनोहर मंजुल के देहावसान के साथ वाणी का विराट वैभव विदा हो गया. क्रिकेट कमेंट्री में राष्ट्रभाषा का अग्रदूत अनंत में विलीन हो गया. राजस्थान का बहुमुखी व्यक्तित्व बिछुड़ गया. 92 वर्षीय मंजुलजी ने गत दिवस जयपुर में नारायण विहार स्थित आवास पर 5.30 बजे अंतिम सांस ली.
स्वतंत्रता सेनानी छगनलाल पुरोहित के दूसरे पुत्र के रूप में सात दिसंबर 1932 को जोधपुर में जन्मे मुरली मनोहर पुरोहित ने मैट्रिक में साहित्यिक नाम अपनाया- मुरली मनोहर मंजुल! कालांतर में इसी नाम से वे दुनियाभर में मशहूर हुए. अपने गुण, ज्ञान, अनुभव, योग्यता, कौशल और वाणी से हिंदी प्रसारण जगत में प्रकाशमान रहे. 1963 से 2004 तक कमेंट्री के ज़रिए अपना अलग इतिहास बनाया, राजस्थान का नाम रोशन किया.
साहित्य की विविध विधाओं में उन्होंने सृजन किया. लेकिन मूलत: वे कवि थे. इसीलिए उनकी उद्घोषणा में साहित्य की गरिमा, भाषा का लालित्य और उच्चारण का सम्मोहन समाहित रहा.
Text and Audio Courtesy M.D. Soni