मुस्लिम समाज को प्रशांत किशोर की बात को गंभीरता से लेना चाहिए

मुस्लिम समाज को प्रशांत किशोर की बात को गंभीरता से लेना चाहिए
मुस्लिम समाज को प्रशांत किशोर की बात को गंभीरता से लेना चाहिए

 

 

चुनाव विश्लेषक से राजनेता बनने की ओर बढ़ रहे प्रशांत किशोर बिहार में घूम – घूमकर जनता से सीधा संपर्क कर रहे हैं। राजनीति और राजनेताओं के बारे में बेबाक विचार व्यक्त करने में भी वे परहेज नहीं करते। उनके साक्षात्कार समाचार माध्यमों में छाए रहते हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर श्री किशोर प्रकाश में आए जिन्होंने भाजपा की रणनीति बनाई थी। लेकिन ज्यादा दिनों तक ये रिश्ता नहीं चला और कुछ माह बाद हुए बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार का दामन पकड़ा और उनका चुनाव अभियान संचालित कर उन्हें जितवाने में मुख्य भूमिका निभाई। वे मुख्यमंत्री के सलाहकार और जनता दल (यू) में भी शामिल हुए किंतु वहां भी पटरी नहीं बैठी तो फिर चुनाव रणनीतिकार बनकर ममता बैनर्जी के अभियान में शामिल होकर उनको जबरदस्त जीत दिलवाई । इसके अलावा भी कुछ राज्यों में विभिन्न पार्टियों को सेवाएं देते रहे किंतु बीते एक दो सालों से जन सुराज अभियान नामक संगठन बनाकर बिहार के कोने – कोने में घूमकर लोगों को व्यवस्था की बुराइयों के साथ उनके कर्तव्यों का स्मरण करवा रहे हैं । देर सवेर राजनीतिक दल बनाकर चुनाव मैदान में उतरने का भी इरादा वे व्यक्त कर चुके हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने मुस्लिम समुदाय के बीच कुछ ऐसी बातें कहीं जो निश्चित रूप से आंखें खोलने वाली हैं। उन्होंने साफ तौर पर ये कहा कि मुस्लिमों की वर्तमान दुरावस्था का कारण भाजपा नहीं हैं । ये कहना भी गलत होगा कि उनको लालू या अन्य भाजपा विरोधी संगठनों ने ठगा है। असलियत ये है कि मुसलमानों ने अपने रहनुमा चुनने में भारी भूल की जिसका खामियाजा वे भुगत रहे हैं। उन्होंने याद दिलाया कि मोहम्मद पैगंबर साहब ने नसीहत दी थी कि जिस कौम को अपने रहनुमाओं की समझ न हो वह मुसीबत में फंसती है। उनके कहने का आशय ये था कि मुसलमानों में डर पैदा करने वाली पार्टियों ने उनके वोट तो जमकर बटोरे लेकिन उनकी भलाई के बारे में नहीं सोचा। यही बात असदुद्दीन ओवैसी भी अक्सर कहा करते हैं कि मुसलमानों को कांग्रेस , सपा और राजद जैसे दलों का पिछलग्गू बनने की बजाय अपना स्वयं का नेतृत्व विकसित करना चाहिये जो उनकी स्थिति का आकलन करते हुए उनकी जरूरतों को जमीनी स्तर पर समझकर पूरा करे। ये बात बिलकुल सही है कि आजादी के 76 साल बाद भी मुसलमान मुख्यधारा से अलग – थलग बने हुए हैं। उनके बीच से राजनीतिक नेता तो बहुत सारे निकले किंतु उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं बन सका। कहने को तो देश के राष्ट्रपति के अलावा केंद्र तथा राज्यों में तमाम मंत्री मुस्लिम समाज से बने । उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायपालिका के उच्च पदों पर भी अनेक मुस्लिम आसीन रहे। कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी मुस्लिम समाज से बड़ी – बड़ी हस्तियां निकलीं किंतु राजनीतिक नेतृत्व की अग्रिम पंक्ति में उन्हें स्थान नहीं मिला। जिन राजनीतिक दलों ने उनका हितचिंतक बनने का दिखावा किया उनका स्वार्थ केवल उनके वोट कबाड़ने तक सीमित रहा।।बाबरी कांड के बाद कांग्रेस से नाराज होकर मुस्लिम समुदाय ने मुलायम , लालू , ममता और पवार जैसे नेताओं को अपना भाग्यविधाता बनाया । इन नेताओं ने मुसलमानों के मन में रास्वसंघ और भाजपा के विरुद्ध जहर तो खूब भरा लेकिन उनके सामाजिक , शैक्षणिक और आर्थिक विकास की दिशा में ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे वे बदहाली से बाहर आ पाते। उल्टे उन्हें और धर्मांध बनाकर मुल्ला या मौलवियों की मानसिक गुलामी करने की ओर धकेल दिया। नतीजा ये हुआ कि मुसलमान राजनीति का मोहरा बनकर किनारे लगा दिया गया। मुस्लिम वोट बैंक कभी जीत की गारंटी हुआ करता था किंतु उत्तरप्रदेश सहित अनेक राज्यों में हुए चुनावों में मुसलमानों की गोलबंदी भी बेअसर साबित होने लगी है। इसका कारण हिंदुओं का ध्रुवीकरण है। इसीलिए अब कांग्रेस जैसी पार्टी भी खुद को हिंदू हितचिंतक साबित करने में लगी है। अरविंद केजरीवाल मंच से हनुमान चालीसा और ममता बैनर्जी चंडी पाठ करते हुए खुद को हिंदू दिखाने का दावा करती हैं । राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा मंदिरों में जाकर पूजा – पाठ करते फोटो प्रचारित करते दिखाई देते हैं। कमलनाथ ने खुद को हनुमान भक्त घोषित कर रखा है। सभी को समझ आ रहा है कि अब हिंदुत्व ही राजनीतिक सफलता का मूल मंत्र है। इसके लिए मुस्लिमों को महज वोट बैंक बनाकर रखने वाले राजनेता ही जिम्मेदार हैं । प्रशांत किशोर ने मुस्लिम समाज को इन्हीं से बचने की समझाइश दी है। हालांकि मुसलमानों में भी अब एक वर्ग ऐसा हो गया है जो इस्लाम के नाम पर उन्हें मुख्य धारा से अलग किए जाने के षडयंत्र को समझकर उसके विरुद्ध सोचने और बोलने लगा है किंतु अधिकांश मुस्लिम समाज अभी भी मुल्लाओं और मौलवियों के इशारों पर नाचता देखा जा सकता है। यहां तक कि अनेक पढ़े – लिखे मुसलमान भी धर्मांधता के शिकंजे में फंसे हुए हैं। श्री किशोर चूंकि बिना लाग – लपेट के बात करते हैं इसलिए उन्होंने साफ शब्दों में मुस्लिम समाज को समयानुकूल सलाह दे डाली। उनका जुड़ाव किसी पार्टी या विचारधारा से नहीं होने से उनकी बात निष्पक्ष है। यदि मुसलमान इस बारे में गंभीरता से सोचें तो उनका भविष्य संवर सकता है।