लोकसभा चुनाव के कुछ माह पहले मोदी सरकार का अंतरिम बजट कल लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया जावेगा। मई में बनने वाली नई सरकार वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए पूर्ण बजट लेकर आएगी। अंतरिम बजट में हालांकि नए नीतिगत फैसलों से बचा जाता है परंतु चुनाव करीब होने के कारण सरकार ऐसा कुछ जरूर करेगी जिससे मतदाताओं को आकर्षित कर सके। राम मंदिर में प्राण – प्रतिष्ठा के बाद से तो मोदी विरोधी विश्लेषक भी मानने लगे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में वे तीसरी बार विजेता बनकर उभरेंगे किंतु कोई भी चतुर योद्धा मुकाबले के पहले किसी भी तरह की कसर नहीं रखता । और उस दृष्टि से प्रधानमंत्री अंतरिम बजट के जरिए जितना संभव होगा ऐसा करने का प्रयास करेंगे जिससे कि अपने पक्ष में बह रही हवा को और तेज कर सकें। इसीलिए आर्थिक विशेषज्ञ अनुमान लगा रहे हैं कि वित्त मंत्री आयकर में छूट के साथ ही महिलाओं और गरीबों के कल्याण के लिए कुछ ऐसे प्रावधान अंतरिम बजट में करेंगी जिनका असर चुनाव तक बना रहे। इसका ताजा उदाहरण म. प्र है जहां गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले तत्कालीन शिवराज सरकार द्वारा प्रारंभ की गई लाड़ली बहना योजना ने कांग्रेस के हाथ आती जीत को छीन लिया । हाल ही में किसान कल्याण की राशि में वृद्धि करने के पीछे भी मोदी सरकार की यही सोच रही। इसीलिए बड़े निर्णयों को भले ही अंतरिम बजट में श्रीमती सीतारमण समाहित न कर सकें किंतु उस पर चुनाव की छाया रहना निश्चित है। हालांकि अपने भाषण में वे भाजपा के चुनाव घोषणापत्र की झलक जरूर दे सकती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि श्री मोदी के दस वर्षीय कार्यकाल में देश की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण प्रति माह होने वाला जीएसटी संग्रह है। आयकर सहित अन्य प्रत्यक्ष करों की वसूली भी उम्मीद से ज्यादा बढ़ी है। देश में वाहनों की बिक्री की अलावा घर बनाने या खरीदने वालों की संख्या में भी जबरदस्त वृद्धि हो रही है। कोरोना काल में यद्यपि अर्थव्यवस्था ने हिचकोले लिए थे किंतु 80 करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन और खातों में सीधे राशि जमा किए जाने से देश अराजकता से बच गया। टीकाकरण का राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम भी जिस प्रभावशाली तरीके से संचालित हुआ उससे प्रधानमंत्री की कार्यकुशलता को वैश्विक स्तर पर प्रशंसा हासिल हुई। ये बात हर कोई मानता है कि इस सरकार द्वारा गरीबों के कल्याण के लिए जो योजनाएं शुरू की गईं उनका लाभ उन्हें बिना बिचौलियों को घूस दिए मिला। जनधन योजना के खाते खोले जाते समय उनकी उपयोगिता पर सवाल उठाए गए थे । लेकिन उसने गरीब कल्याण योजना को पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का क्रांतिकारी काम किया। यद्यपि प्रधानमंत्री आवास योजना में ज़रूर घूसखोरी की शिकायतें विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से मिलती हैं किंतु जिन योजनाओं में सहायता राशि सीधे हितग्राही के बैंक खाते में जमा होती है उनमें सरकारी अमले की लूट – खसोट पर विराम लग गया। विख्यात चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर का ये कहना अर्थपूर्ण है कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के प्रमुख कारणों में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के अलावा लाभार्थी भी हैं। हालांकि विभिन्न राज्य सरकारें भी ऐसी ही ढेरों योजनाएं लेकर आईं किंतु म.प्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों ने ये साबित कर दिया कि प्रधानमंत्री द्वारा किए गए वायदों पर जनता का विश्वास ज्यादा है। लेकिन एक बात जो वित्तमंत्री को ध्यान रखनी होगी, वह है मध्यम वर्ग की अपेक्षाओं को पूरा करना जो भाजपा का सबसे पुख्ता समर्थक रहा है । यद्यपि अभी भी उसकी प्रतिबद्धता बनी हुई है किंतु ये कहना गलत न होगा कि मोदी सराकर की आर्थिक नीतियों से उद्योगपति और गरीब तो संतुष्ट हैं किंतु नौकरपेशा और मध्यमवर्गीय व्यवसायी महसूस करते हैं कि सरकार उसके हितों के बारे में उतनी संवेदनशील नहीं है। ऐसे में वित्त मंत्री से अपेक्षा है कि वे अंतरिम बजट के साथ जुड़ी मर्यादाओं का पालन करते हुए भी मध्यम आय वर्ग के कर्मचारियों और व्यवसायियों के प्रति उदारता बरतें। कम से कम इस बात का संकेत तो दिया ही जा सकता है कि तीसरी बार सत्ता में आने के बाद यह सरकार उनके हितों के संरक्षण हेतु क्या – क्या करेगी ? पेट्रोल – डीजल के दामों के अलावा जीएसटी की दरों को युक्तियुक्त बनाने के बारे में भी लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं। सबसे बड़ी समस्या है चिकित्सा के बढ़ते खर्च की। मोदी सरकार की आयुष्मान योजना ने गरीब वर्ग को तो जबरदस्त राहत दी किंतु मध्यम आय वाले इलाज के महंगे होने से हलाकान हैं। इसलिए इस बारे में किसी क्रांतिकारी ऐलान की उम्मीद भी है और जरूरत भी।