संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
कतर नामक खाड़ी देश में 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों को मृत्युदंड की सजा सुनाए जाने से देश में खलबली है। सरकार ने इस पर अचरज जताते हुए उनको कानूनी सहायता देने की पहल की है। उन सब पर इजराइल के लिए जासूसी करने का आरोप है। वैसे भारत और कतर के आपसी संबंध काफी अच्छे हैं। लेकिन दुनिया के सभी इस्लामिक आतंकवादी संगठनों को वह खुलकर आर्थिक सहायता देता है । कतर की सऊदी अरब से जरा भी नहीं पटती । चूंकि इसके पास गैस का सबसे बड़ा भंडार है इसलिए अमेरिका तक उससे दबता है। जबकि वह इजराइल को फूटी आंखों नहीं देखना चाहता। बीते 7 अक्टूबर को गाजा पट्टी पर काबिज हमास नामक संगठन द्वारा इजराइल पर हमला किया जाने के बाद भारत ने इजराइल के साथ खड़े होने की जो पेशकश की उससे कतर नाराज बताया जाता है। कतर और ईरान वे देश हैं जो इस लड़ाई में खुलकर हमास के साथ खड़े हुए हैं। इसी बीच अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का बयान आ गया कि हमास द्वारा इजराइल पर हमले के पीछे भारत – मध्यपूर्व यूरोप आर्थिक कारीडोर परियोजना है जिसके लिए दिल्ली में हुए जी – 20 सम्मेलन में अमेरिका , फ्रांस , इटली , यूरोपीय यूनियन , सऊदी अरब , यूएई ने सहमति दी थी। इस कारीडोर को भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता माना गया। उल्लेखनीय है चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा यूरोप तक वन बेल्ट वन रोड की जो योजना शुरू की गई थी वह खटाई में पड़ती जा रही है। अनेक देश उससे हाथ खींचते जा रहे हैं । यहां तक कि पाकिस्तान तक में विरोध की आवाजें उठने लगीं। इससे चीन को जबरदस्त आर्थिक नुकसान हो रहा है। जी – 20 में जिनपिंग की गैर मौजूदगी में ही भारत द्वारा प्रस्तावित कारीडोर पर रजामंदी बनी। चूंकि ईरान भी चीन की परियोजना में शामिल था इसलिए उसे भी भारत की ये सफलता रास नहीं आई। वह इस बात से भी भन्नाया हुआ है कि भारत – इजराइल बेहद निकट आ चुके हैं । दूसरी तरफ अमेरिका द्वारा सऊदी अरब और इजराइल के बीच दोस्ती करवाने के प्रयासों में रुकावट पैदा करने के लिए भी ईरान और कतर बेचैन थे । वैश्विक राजनीति के जानकार ये मानकर चल रहे हैं कि हमास के हमले का निशाना केवल इजराइल ही नहीं अपितु सऊदी अरब और भारत – मध्यपूर्व यूरोप आर्थिक कारीडोर भी है। कतर में पूर्व सैन्य अधिकारियों को मृत्यदंड के पीछे भी भारत द्वारा इजराइल के साथ खड़े होने का फैसला बताया जाता है। उसका सोचना ये हो सकता है कि इस बहाने वह भारत को दबाने में कामयाब हो जाएगा। और फिर गैस की आपूर्ति को लेकर भी तो भारत काफी हद तक उस पर निर्भर है। कूटनीति में जो दिखता है वास्तविकता उससे काफी हटकर रहती है। इसीलिए इजराइल पर हमास के हमले को भले ही फिलिस्तीन से जोड़कर देखा गया किंतु असली कारण सऊदी अरब और इजराइल की दोस्ती में बाधा पैदा करना भी था । साथ ही जिनपिंग की खीझ भी है जो वन बेल्ट वन रोड परियोजना के खटाई में पड़ने से तो परेशान थे ही , जी – 20 सम्मेलन में नरेंद्र मोदी के भारत मध्यपूर्व यूरोप आर्थिक कारीडोर के प्रस्ताव पर अमेरिका, यूरोप , यूएई और सऊदी अरब की सहमति मिलने से चीन के साथ ही ईरान और पाकिस्तान जैसे देश परेशान हो उठे । हमास के हमले के बाद जिस तरह से अरब देशों के साथ ही ईरान , कतर और चीन खुलकर उसके पक्षधर बनकर उभरे उससे बहुत सारी बातें स्पष्ट हो गईं। अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान और कतर में पूर्व भारतीय नौसैनिकों को मृत्युदंड के समाचार एक साथ आना भी महज संयोग है। ऐसा ऐसा लगता है पश्चिम एशिया में नया शक्ति संतुलन बनने से इस्लामिक देशों की एकजुटता छिन्न – भिन्न होने लगी है। यूएई तो इजराइल से पहले ही दोस्ताना कायम कर चुका है। मिस्र ने भी गाजा पट्टी से आने वाले शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए । सऊदी अरब के नए शाही शासक देश को आधुनिकता की ओर ले जाने प्रयासरत हैं। ऐसे में इस्लाम के नाम पर आतंकवाद और कट्टरता के पोषक यदि उद्वेलित हैं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कतर में भारतीय नागरिकों को मौत की सजा दिया जाना भी भारत पर कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश है जिससे वह इजराइल के साथ खड़े रहने से बचे । हालांकि भारत सरकार ने फिलीस्तीन के भूमि अधिकार का समर्थन दोहराते हुए गाजा पट्टी में राहत सामग्री भी भेजी किंतु कतर द्वारा उठाए गए कदम के बाद प्रधानमंत्री श्री मोदी को वहां की सरकार से सीधे बात करनी चाहिए। ऐसे अवसरों पर ही कूटनीतिक कुशलता की परीक्षा होती है। इस सबके बीच भारत को अपने राष्ट्रीय हितों के साथ विदेशों में रह रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा की चिंता भी करनी होगी। उल्लेखनीय है कतर सहित खाड़ी देशों में लाखों भारतीय कार्यरत हैं।