मुझे बहुत से लोग मिलते हैं, और कहते हैं, गुरुजी मैं हर रोज ध्यान में बैठता हूं। एक घंटा सुबह, और 1 घंटा शाम को। परंतु मेरा मन पूरे 1 घंटे में कुल मिलाकर 5-7 मिनट ही टिक पाता है। बाकी समय तो मन में कुछ न कुछ सांसारिक विचार ही आते रहते हैं। मैं उन्हें रोक नहीं पाता। मैं क्या करूं? तो मैं उन्हें कहता हूं कि इस बात का बहुत लंबे समय तक अभ्यास करें, कि मेरे मन में विचार स्वयं नहीं आते। मैं ही विचार लाता हूं। हजारों बार इस बात को अपने मन में दोहराएं, कि मेरा मन जड़ है। वह स्वयं कोई विचार नहीं लाता। मैं चेतन आत्मा हूं। मैं ही विचार लाता हूं। मेरी इच्छा और प्रयत्न के बिना मेरे मन में कोई विचार उत्पन्न नहीं हो सकता। इस प्रकार से लंबे समय अर्थात वर्षों तक चिंतन मनन करने से, इस बात को दोहराने से मन में यह बात बैठ जाएगी, कि मैं ही विचार लाता हूं। अब मैं सांसारिक विचार अपने मन में नहीं उठाऊंगा। अब मैं केवल ईश्वर का ही विचार अपने मन में लाऊंगा। इतना लंबा अभ्यास करके फिर आपको विचारों को रोकने में सफलता मिलेगी। इसके लिए संसार से वैराग्य होना आवश्यक है। जब तक संसार की वस्तुओं में कहीं राग और कहीं द्वेष बना रहेगा, तब तक कोई भी व्यक्ति विचारों को नहीं रोक सकता। राग और द्वेष के कारण उसके मन में विचार उठते ही रहेंगे। इसलिए पहले वैराग्य को प्राप्त करें, अर्थात संसार की वस्तुओं में जो आपको राग और द्वेष है, पहले उस राग और द्वेष को धीरे-धीरे कम करते जाएं। जितना जितना आप का राग द्वेष कम होता जाएगा, उतना उतना आप का वैराग्य बढ़ता जाएगा, और उतना उतना ही आप विचारों को रोक पाएंगे। जैसे तालाब के हिलते हुए पानी में आप अपना चेहरा नहीं देख सकते। यदि तालाब का पानी शांत हो जाए, तब आप उस शांत पानी में अपना चेहरा देख सकते हैं। उसी प्रकार से जब तक आपका मन सांसारिक वस्तुओं के राग द्वेष से प्रभावित रहेगा, तब तक राग द्वेष के कारण आपके मन में चंचलता उत्पन्न होती रहेगी। उस चंचलता के होते हुए, आपको अपने मन में आत्मा परमात्मा की अनुभूति नहीं हो पाएगी। जब वैराग्य और अभ्यास के कारण आप का मन शांत हो जाएगा, तभी आत्मा परमात्मा के दर्शन आप को आपके मन में होंगे। अन्यथा नहीं। कोई व्यक्ति दो-चार महीने में डॉक्टर नहीं बन जाता। एक अच्छा डॉक्टर बनने के लिए 30 40 वर्ष तक लगातार मेहनत करनी पड़ती है। ऐसे ही योगी बनने में भी लंबा समय लगेगा। इसलिए यदि आपका मन ध्यान में नहीं टिकता, तो चिंता न करें। उदास न हों। निराश न हों। वैराग्य को बढ़ाते रहें, और लंबे समय तक लगातार अभ्यास करते रहें, निश्चित ही एक दिन सफलता मिलेगी। – स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग
महाविद्यालय, रोजड़ गुजरात ।