समस्याएं सबके जीवन में होती हैं। कोई भी व्यक्ति समस्याओं से खाली नहीं है। एक समस्या हल होती है, तो दो-तीन और आ जाती हैं। जिस व्यक्ति में अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए उत्तेजना उत्पन्न होती है। जो व्यक्ति अपनी समस्याओं से संघर्ष करता है, घबराता नहीं, उन समस्याओं के साथ युद्ध करता है, ऐसा व्यक्ति जीत जाता है। उसी को जीवित कहते हैं । इस प्रकार से अपनी समस्याओं से संघर्ष करने का नाम जीवन है। और जो व्यक्ति अपनी समस्याओं को देख समझकर भी उन्हें दूर नहीं करता, आलसी बनकर पड़ा रहता है, उसे तो मरे हुए के समान ही समझना चाहिए। जो व्यक्ति दूसरों की समस्याओं को समझता है, उन्हें दूर करने के लिए अंदर से वह उत्तेजित होता है, और तन मन धन लगाकर दूसरों की समस्याएं दूर करता है, ऐसा व्यवहार करना मनुष्यता है। ऐसा मनुष्य प्रत्येक व्यक्ति को होना चाहिए। केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति कर लेना और दूसरों की कोई चिंता न करना, ऐसा तो प्रायः पशु पक्षियों में देखा जाता है बल्कि कभी-कभी तो पशु पक्षियों में भी इस प्रकार के मनुष्यता वाले परोपकार आदि लक्षण देखे जाते हैं, कि वे अपनी परवाह न करते हुए भी दूसरे प्राणियों की रक्षा करते हैं। उनके साथ प्रेम से मिल जुलकर रहते हैं। ऐसा देखकर बहुत प्रसन्नता होती है, कि इनमें भी मनुष्यों जैसी ही आत्मा है। ऐसे अनेक वीडियो आपको यूट्यूब पर भी देखने को मिल जाएंगे। जब बहुत कम सामर्थ्य वाले पशु पक्षी आदि प्राणी भी दूसरों का दुख समझते, तथा यथाशक्ति उनके दुखों को दूर करने का प्रयास करते हैं। तो फिर, मनुष्य तो इन पशु पक्षियों से बहुत अधिक सामर्थ्यवान है। उसे तो अवश्य ऐसा पुरुषार्थ करना ही चाहिए। तभी वह सच्चे अर्थों में चमनुष्य कहलाएगा। अतः सब लोग अपनी समस्याएं भी दूर करें और दूसरों की भी, आलसी बनकर
न पड़े रहें । अर्थात च्जीवित मनुष्य बनें, मृत नहीं ।
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़ गुजरात