जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय इनर्जी एसोसिएशन (आइईए) की रिपोर्ट बताती है कि कच्चे तेल की खपत में भारत वर्ष 2027 में चीन को भी पीछे छोड़ कर दुनिया की सबसे बड़ा उपभोक्ता बन जाएगा। वर्ष 2022-23 में भारत में डीजल की खपत 12.1 फीसद और पेट्रोल की खपत में 13.4 फीसद का इजाफा हुआ था जो आर्थिक तौर पर ज्यादा संवृद्ध देशों में सबसे ज्यादा था देश में कच्चे तेल के जितने भंडार अभी तक मिले हैं वो भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की जरूरत सिर्फ 15 वर्षों तक पूरा करने की क्षमता है। वह भी तब जब हम अभी भी अपनी जरूरत के 87 फीसद कच्चे तेल के लिए विदेशों पर आपूर्ति है। यानी अगर अगले कुछ वर्षों में देश में कच्चे तेल के बड़े भंडार नहीं मिले तो हमें डेढ़ दशक बाद कच्चे तेल के लिए पूरी तरह से विदेशों पर निर्भर होना पड़ेगा। यह बात पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय की एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में कही गई है रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 तक भारत में प्रमाणित तौर पर कुल 44.78 करोड़ टन के बराबर तेल भंडार है जो 15 वर्षों तक चलेगा। वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने वर्ष 2021-22 तक कच्चे तेल पर विदेशी निर्भरता में 10 फीसद घटाने का लक्ष्य रखा था। इस लक्ष्य को पाने के लिए पांच सूत्रीय फार्मूला तैयार किया गया था। लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक साल दर साल घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन घटता ही गया है। वर्ष 2018-19 में देश के सभी क्रूड भंडारों से संयुक्त तौर पर 3.42 करोड़ टन कच्चे तेल का उत्पादन हुआ था जो वर्ष 2021-22 में घट कर 2.96 करोड़ टन और वर्ष 2022-23 में घट कर 2.91 करोड़ टन रह गया था। चालू वित्त वर्ष (2023-24) के पहले आठ महीनों में यह घट कर 2.41 करोड़ टन ही रहा है। साफ है कि घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए पूर्व में लागू न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी (एनईएलपी) और मौजूदा हाइड्रोकार्बन एंड एक्सप्लोरेशन पॉलिसी (एचईएलपी) के तहत निजी सेक्टर को भारत में क्रूड की खोज व उत्पादन के लिए कई तरह के प्रोत्साहन दिए गए। विदेशों में कई रोड-शो के बावजूद अभी तक कोई बड़ी विदेशी हाइड्रोकार्बन कंपनी ने भारत में क्रूड खोज के लिए निवेश नहीं किया है। अंतरराष्ट्रीय इनर्जी एसोसिएशन (आइईए) की रिपोर्ट बताती है कि कच्चे तेल की खपत में भारत वर्ष 2027 में चीन को भी पीछे छोड़ कर दुनिया की सबसे बड़ा उपभोक्ता बन जाएगा। वर्ष 2022-23 में भारत में डीजल की खपत 12.1 फीसद और पेट्रोल की खपत में 13.4 फीसद का इजाफा हुआ था जो आर्थिक तौर पर ज्यादा संवृद्ध देशों में सबसे ज्यादा था। यह रफ्तार अगले कई वर्षों तक बने रहने की संभावना है। इसके बावजूद तेल खोज व उत्पादन की दिग्गज वैश्विक कंपनियां भारत में आने से हिचक रही हैं। जानकारों के मुताबिक इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि क्रूड खोज व उत्खनन का काम कई दशकों का होता है। दूसरी तरफ, जिस तरह से पूरी दुनिया में पर्यावरण सुरक्षा के आधार पर फासिल फ्यूल्स (पेट्रोल, डीजल, एलपीजी आदि) के खिलाफ माहौल बन रहा है उससे विदेशी कंपनियां बड़ा निवेश करने से हिचक रही हैं। भारत सरकार भी इलेक्टि्रक वाहनों को बढ़ावा देने के साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन, बायो-ईंधन और रिनीवेबल सेक्टर को काफी आक्रामक तरीके से बढ़ावा दे रही है। इसका असर आने वाले दिनों में कच्चे तेल के उपभोग पर दिखाई दे सकता है। वर्ष 2025 तक 20 फीसद इथनोल मिश्रित पेट्रोल का लक्ष्य है जो अभी 12 फीसद है। इसका भी असर मांग पर दिखेगा।
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