वे बच्चों पर दबाव डालते हैं, हम कोचिंग इंस्टीट्यूट को निर्देश नहीं दे सकते
नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश में स्टूडेंट्स की सुसाइड के बढ़ते मामलों के पीछे सबसे बड़ा कारण है पेरेंट्स की तरफ से बच्चों पर दबाव। इसके अलावा बेहद कॉम्पिटिशन भी स्टूडेंट्स की सुसाइड की एक बड़ी वजह है।
देश में तेजी से फैलते कोचिंग सेंटरों के रेगुलराइज करने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने कोचिंग सेंटरों को निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया। ये याचिका मुंबई के डॉ. अनिरुद्ध नारायण मालपानी ने लगाई। डॉ. मालपानी की ओर से एडवोकेट मोहनी प्रिया ने कोर्ट में दलीलें दी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये आसान काम नहीं है। इन मामलों के पीछे माता-पिता का दबाव है। बच्चों से ज्यादा उन पर उनके पेरेंट्स दबाव डाल रहे हैं। ऐसे में अदालत कैसे निर्देश दे सकता है। ज्यादातर लोग कोचिंग सेंटरों के खिलाफ हैं, लेकिन आप स्कूलों का हाल देखिए। कॉम्पिटिशन के दौर में स्टूडेंट्स के पास इन कोचिंग सेंटरों में जाने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं है।
घर से दूर 14 साल के बच्चे कोचिंग फैक्ट्रियों में जा रहे : डॉ. मालपानी ने अपनी याचिका में कहा कि देशभर में लाभ के भूखे प्राइवेट कोचिंग इंस्टिट्यूट्स तेजी से बढ़ रहे हैं। इनको रेगुलराइज करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश की जरूरत है। ये कोचिंग इंस्टिट्यूट्स इंजीनियरिंग के (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी), मेडिकल के नीट (नेशनल एलिजबिलटी कम इंट्रेंस टेस्ट) और अन्य कॉम्पिटिशन परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं।
याचिका में कहा गया था कि 14 साल के बच्चे घर से दूर कोचिंग फैक्ट्रियों में दाखिले ले रहे हैं। यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन के लिए कड़ी तैयारियां कराई जाती हैं। बच्चे मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं। ये अनुच्छेद 21 में दिए गए गरिमामय जीवन जीने के हक के भी खिलाफ है।
अकेले कोटा में जनवरी से अगस्त तक 24 छात्रों ने की सुसाइड: जनवरी से 28 अगस्त तक 24 मामले सामने आए हैं। इनमें 13 स्टूडेंट्स को कोटा आए हुए दो-तीन महीने से लेकर एक साल से भी कम समय हुआ था। सात स्टूडेंट्स ने तो डेढ़ महीने से लेकर पांच महीने पहले ही कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया था। इनके अलावा दो मामले सुसाइड की कोशिश के भी सामने आए थे।