संसार में कहावत है कि सत्य तो सदा कड़वा ही होता है किंतु यह कहावत ठीक नहीं है। महर्षि मनु जी ने वेदों के आधार पर ऐसा कहा है, कि सत्यं ब्रूयात्प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। अर्थात सत्य बोलो, मीठा बोलो। परंतु कड़वा सत्य मत बोलो। इसलिए वेदों और ऋषियों के ग्रंथों के अनुसार वास्तविकता यही है कि सत्य मीठा भी होता है और कड़वा भी, दोनों प्रकार का होता है। यदि सत्य केवल कड़वा ही होता, तो हम सबके जीवन में सदा कड़वाहट ही बनी रहती। जबकि ऐसा नहीं है। इस विषय में यह प्रत्यक्ष प्रमाण भी है कि आप पूरे दिन में अनेक बार सत्य बोलते हैं। जब आप दिन भर में अनेक बार सत्य बोलते हैं, फिर भी जीवन में कड़वाहट नहीं होती तो इससे यह सिद्ध होता है, कि सभी सत्य कड़वे नहीं होते। बहुत सारे सत्य मीठे भी होते हैं। उन मीठे सत्यों के कारण आपके जीवन में दिनभर मिठास बनी रहती है। हां, यह ठीक है, कि कोई-कोई सत्य ऐसा होता है, जिसे मीठा बनाकर भी बोला जा सकता है और कड़वा बनाकर भी । जैसे कोई कहे, कि सूरदास जी, ज़रा सावधानी से चलिएगा। यह मीठा सत्य है। और कोई ऐसा भी कह सकता है, कि अंधे, तुझे दिखता नहीं है, मुझे चोट मार दी। यह कड़वा सत्य है। परंतु कोई-कोई सत्य तो ऐसा भी होता है, उसे आप जितना भी मीठा बनाएं, उसकी पूरी कड़वाहट नहीं जाती। कुछ तो कड़वाहट रहती ही है। विशेष रूप से उस सत्य की, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को उसका दोष बताता है। उस सत्य को आप कितना भी मीठा बनाएं, फिर भी दोष सुनने वाले को कुछ-न-कुछ कड़वाहट लगती ही है। थोड़ा तो कष्ट होता ही है। उसमें दोष सुनने वाले व्यक्ति का होता है, बोलने वाले का नहीं। क्योंकि वह सत्य को सुनना सुनना ही नहीं चाहता। यह दोष है। इस कारण से उसको वह सत्य मीठा होने पर भी हितकारी होने पर भी कड़वा लगता है। परंतु ऐसे सत्य भी यदा कदा बोलने ही पड़ते हैं। क्योंकि इसके बिना दूसरे व्यक्ति का सुधार होना संभव नहीं है। जब तक दूसरे व्यक्ति का सुधार न हो, और यदि वह व्यक्ति आपका निकट संबंधी हो, तो उसका सुधार किए बिना आपके जीवन में सुख नहीं हो सकता। इसलिए ऐसे सत्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती। उसे कभी-न-कभी बोलना ही पड़ता है। जब जब ऐसा सत्य बोला जाता है, तब तब दूसरे लोगों को कष्ट होता है। जिनका दोष बताया जाता है, तब वे उसकी प्रतिक्रिया करते हैं, रिएक्शन करते हैं। तब प्रतिक्रिया के रूप में यह झूठी कहावत बोली जाती है कि सत्य तो सदा कड़वा ही होता है। अस्तु। अब जब भी आप उक्त कड़वा सत्य बोलेंगे, तब स्वाभाविक बात है, कि लोग आपके शत्रु बनेंगे। और आपसे घृणा भी करेंगे। आपके विरुद्ध अनेक प्रकार की कार्यवाही भी करेंगे। इस प्रकार से आप जितने अधिक लोगों को ऐसा कड़वा सत्य सुनाएंगे, आपके शत्रु भी उतने ही अधिक बनेंगे। फिर भी यथाशक्ति यथासंभव यथाअवसर बुद्धिमत्ता से आपको ऐसा सत्य बोलना ही चाहिए, क्योंकि इसके बिना आपका जीवन सुरक्षित एवं सुखमय नहीं बन पाएगा।
-स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात