संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच म.प्र विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर जो विवाद उत्पन्न हुआ उसको शांत करने की कोशिश कांग्रेस आलाकमान द्वारा की गई थी। सुनने में आया कि राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने इस बारे में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से बात कर उनके गुस्से पर पानी डालने की कोशिश भी की। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को दिल्ली तलब भी किया गया था।कांग्रेस द्वारा सपा के लिए 6 सीटें छोड़ने के आश्वासन से मुकर जाने के बाद अखिलेश ने धोखेबाजी का आरोप लगाते हुए अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए । इधर कमलननाथ ने कौन अखिलेश – वखलेश जैसी टिप्पणी कर सपा अध्यक्ष को और नाराज कर दिया । अखिलेश ने तो इस पर ये धमकी भी दे डाली कि कांग्रेस के साथ भविष्य में होने वाले गठबंधन के बारे में उन्हें सोचना पड़ेगा । गत दिवस म.प्र के छतरपुर जिले में सपा प्रत्याशी का प्रचार करने के दौरान उन्होंने एक बार फिर कांग्रेस को भला – बुरा कहते हुए याद दिलाया कि 2018 में कमलनाथ की सरकार सपा के समर्थन से ही बनी थी। लेकिन इस बार उसके विधायक जीते तो किसी का साथ नहीं देंगे क्योंकि कांग्रेस और भाजपा मिले हुए हैं। इसीलिए उनके नेता एक दूसरे में आते – जाते रहते हैं। स्मरणीय है बुंदेलखंड का उक्त इलाका उ.प्र से सटा हुआ है जहां सपा का प्रभाव कुछ सीटों पर है। बीच में लगा था कि श्री गांधी और श्री खरगे के प्रयासों से अखिलेश ठंडे पड़ गए किंतु गत दिवस उन्होंने जिस तरह कांग्रेस को गरियाया उससे लगा कि उनके तेवर अभी भी गर्म हैं। प्रदेश में सपा को कितनी सफलता मिलेगी ये कोई नहीं बता सकता । लेकिन वह कांग्रेस के लिए सिरदर्द तो बन ही गई है। विचारणीय प्रश्न ये है कि कमलनाथ द्वारा अन्य विपक्षी दलों के साथ गठबंधन नहीं किए जाने की रणनीति प्रदेश स्तर पर तय की गई अथवा राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा ? बहरहाल प्रदेश में सपा के अलावा आम आदमी पार्टी और जनता दल (यू) ने भी अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। दो दिन पहले अरविंद केजरीवाल और भगवंत सिंह मान ने सिंगरौली आकर भाजपा के साथ कांग्रेस पर भी खूब हमले किए। यद्यपि जनता दल (यू) के प्रचार हेतु कोई बड़ा नेता तो नहीं आया किंतु बिहार में सीपीआई के एक आयोजन में नीतीश कुमार ने कांग्रेस पर इंडिया गठबंधन की उपेक्षा करने का जो आरोप लगाया उसके बाद से 2024 के महासमर के पहले ही विपक्षी खेमे में मतभेद उभरने लगे हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी ये लिख रहे हैं कि कांग्रेस में अहंकार लौटता लग रहा है। जिन पांच राज्यों में फिलहाल चुनाव हो रहे हैं उनमें अनुकूल नतीजों की उम्मीद में वह बाकी विपक्षी दलों की उपेक्षा करने लगी है। नीतीश ने खुले मंच से कटाक्ष किया कि गठबंधन का काम छोड़कर कांग्रेस इन दिनों चुनाव में व्यस्त है। कांग्रेस नेतृत्व भी जिस तरह से इंडिया में शामिल अन्य दलों के प्रति उदासीन नजर आ रहा है उससे लगता है पार्टी लोकसभा चुनाव में अपना हाथ ऊपर रखने की तैयारी अभी से कर रही है। तेलंगाना में के.सी.रेड्डी की पार्टी बी.आर.एस और कांग्रेस में घमासान चल रहा है। आम आदमी पार्टी के दोनों मुख्यमंत्री चुनाव वाले राज्यों में जिस तरह कांग्रेस को भ्रष्ट बता रहे हैं वह जगजाहिर है। इसी तरह पंजाब में मान सरकार अनेक कांग्रेस नेताओं पर कार्रवाई में जुटी है तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी नेताओं के आबकारी मामले में गिरफ्त में आने पर स्थानीय कांग्रेसी नेता खुशी जता रहे हैं। कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव के पहले विपक्ष भाजपा के विरुद्ध जिस एकजुटता का प्रदर्शन कर सकता था वह किसी भी कोण से नजर नहीं आ रही। उल्टे जो सौजन्यता उपजी वह भी कटुता में तब्दील होती दिखती है । दरअसल इंडिया में शामिल दलों के मन में ये आशंका जगह बनाने लगी है कि पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस को यदि उसकी उम्मीद के अनुसार सफलता मिल गई तब वह 2024 के आम चुनाव में उन सबको ठेंगे पर रखने से बाज नहीं आयेगी। उनका सोचना रहा कि पांच राज्यों के चुनाव में इंडिया गठबंधन रूपी प्रयोग को आजमाकर जनता के सामने विपक्षी एकता का उदाहरण पेश किया जा सकता था। लेकिन कांग्रेस ने इसमें रुचि दिखाना तो दूर उल्टे अन्य दलों को बातों में उलझाए रखते हुए अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए। अखिलेश , नीतीश और अरविंद की कांग्रेस पर नाराजगी देखते हुए विपक्षी एकता की आशाओं पर पानी फिरता लग रहा है। बड़ी बात नहीं पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद तीसरे मोर्चे की कवायद नए सिरे से जन्म लेने लगे क्योंकि सपा , जदयू और आप के प्रभावक्षेत्र क्रमशः उ.प्र , बिहार और दिल्ली में कांग्रेस का स्वतंत्र अस्तित्व लगभग खत्म सा हो चुका है