संसार में तीन पदार्थ अनादि हैं। अनादि का अर्थ है जिसका आदि न हो, अर्थात जिस वस्तु की उत्पत्ति कभी नहीं हुई, जो सदा से विद्यमान पदार्थ है, उसको अनादि कहते हैं । ऐसे तीन पदार्थ हैं, ईश्वर, आत्मा और प्रकृति। इन तीनों को समझना, और समझकर अपने आचरण का सुधार करना बहुत ही आवश्यक है। जो व्यक्ति ऐसा कर लेता है, वह स्वयं भी सुखी हो जाता है और दूसरों को भी सुख देता है। इन तीन अनादि पदार्थों में से ईश्वर एक चेतन पदार्थ है। वह संख्या में एक ही है। वह सारे संसार की रचना करता है। सब आत्माओं के कर्मों का हिसाब रखता है, और ठीक समय पर न्याय पूर्वक ठीक ठीक फल देता है। आत्माएं असंख्य हैं। वे भी चेतन पदार्थ हैं। वे अपने ज्ञान अज्ञान के कारण अच्छे बुरे कर्म करती हैं। जब आत्माएं अच्छे कर्म करती हैं, तो ईश्वर उन्हें अच्छा फल अर्थात सुख देता है। जब आत्माएं बुरे कर्म करती हैं, तो ईश्वर उन्हें बुरा फल अर्थात दुख देता है । इस प्रकार से ईश्वर और आत्माओं का यह संबंध राजा और प्रजा के समान समझना चाहिए। तीसरी वस्तु प्रकृति है। यह जगत का मूल उपादान द्रव्य है, और जड़ पदार्थ है। इसे आजकल की साइंस की भाषा में बेसिक मैटीरियल ऑफ द यूनिवर्स कहते हैं । यह जो जगत का मूल उपादान द्रव्य है, जिसका नाम प्रकृति है । इस मूल द्रव्य प्रकृति से ईश्वर ने यह सारा संसार या जगत बनाया है, जिसमें तरह-तरह के प्राणियों के शरीर हैं, पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश इत्यादि पदार्थ हैं, और खनिज पदार्थ पेट्रोलियम पदार्थ आदि आदि सब जड़ वस्तुएं हैं, जो ईश्वर ने प्रकृति से बनाई हैं। प्रकृति से बनाई गई ये जगत की वस्तुएं स्थूल हैं, नेत्र आदि इंद्रियों से जानी जाती हैं, इसलिए इनको समझना सरल है। परंतु आत्मा और परमात्मा तो बड़े सूक्ष्म तत्त्व हैं। ये दोनों आंखों से नहीं दिखाई देते। इनका पहले तो इस प्रकार से अनुमान करना पड़ता है। सृष्टि भोग्य वस्तु है। एक नियम है कि भोग्य वस्तु का कोई न कोई भोक्ता अवश्य होना चाहिए, अन्यथा वह व्यर्थ होगी। जैसे कार का कोई खरीदार ही न हो, तो कार बनाना व्यर्थ है ।
अतः इस भोग्य सृष्टि को देखकर इसके भोक्ता आत्मा का अनुमान हो जाता है। दूसरा नियम यह है कि जो भी वस्तु संसार में बुद्धि पूर्वक बनी है, उसका कोई न कोई बुद्धिमान निर्माता अवश्य होना चाहिए, उसके बिना वह वस्तु अपने आप इतनी व्यवस्थित रूप से नहीं बन सकती । जैसे कि मकान मोटर गाड़ी आदि वस्तुएं बुद्धिमत्ता से बनाई गई हैं। तो इनके निर्माता बुद्धिमान इंजीनियर भी विद्यमान हैं, उनके बिना ये मकान कार आदि वस्तुएं व्यवस्थित रूप से अपने आप नहीं बस सकती। इसी प्रकार से इस व्यवस्थित रचना सृष्टि को देखकर इसके रचयिता बुद्धिमान ईश्वर का अनुमान हो जाता है। फिर वेद आदि सत्य शास्त्रों की सहायता से और इस अनुमान की सहायता से साधक व्यक्ति पुरुषार्थ करता हुआ धीरे-धीरे वैराग्य प्राप्त करके समाधि तक पहुंच जाता है। उस समाधि अवस्था में साधक व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा दोनों का प्रत्यक्ष जाता हैं। यह कठिन कार्य है, परंतु असंभव नहीं है। कोई कोई पुरुषार्थी, पूर्व जन्म के उत्तम संस्कारों वाला व्यक्ति, जिसे वेदों का अध्ययन करने का अवसर मिल जाए और कोई योग्य गुरु भी मिल जाए, तो उनकी सहायता से वह आत्मा परमात्मा को समझने में समर्थ हो जाता है। अर्थात साधक व्यक्ति ऊपर बताए कारणों तथा ईश्वर की कृपा और सहायता से समाधि को प्राप्त कर लेता है। समाधि लगाकर आत्मा और परमात्मा दोनों की अनुभूति कर लेता है, और अपने अविद्या राग द्वेष आदि दोषों का नाश करके वह मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है। परन्तु इस काम को करने के लिए बहुत अधिक परिश्रम एवं एकाग्रता की आवश्यकता पड़ती है। यदि आप भी सब दुखों से छूटना चाहते हों, जन्म मरण चक्र से बाहर निकलना चाहते हों, ईश्वर का सर्वोत्तम आनन्द प्राप्त करना चाहते हों, तो आप भी ऐसा ही करने का प्रयत्न करें। दुखों से पूरी तरह छूटने का और पूर्ण आनन्द प्राप्त करने का इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है।
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक,
निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात ।