जबलपुर (सिटी डेस्क) । यदि संभागीय कार्यालय में केंद्रीय मंत्री के अलावा संगठन के वरिष्ठ नेताओं के साथ झूमा झटकी और प्रदेश अध्यक्ष विरोधी नारेबजी न हुई होती तब भी नगर भाजपा अध्यक्ष प्रभात साहू ज्यादा दिनों तक अपने पद पर नहीं रहने वाले थे। ये बात भी सही है कि वे नगर अध्यक्ष बनना ही नहीं चाहते थे । इसका कारण उनकी पश्चिम विधानसभा सीट पर दावेदारी थी। इसमें दो मत नहीं है कि वे तरुण भनोत को टक्कर देने वाले सबसे अच्छे प्रत्याशी होते किंतु भाजपा ने सांसद राकेश सिंह को टिकिट देकर श्री साहू की उम्मीदों पर पानी फेर दिया । यदि वे नगर संगठन के मुखिया न होते तब शायद खुलकर श्री सिंह की टिकिट का विरोध करते । उसके बाद उन्होंने उत्तर सीट से दावा ठोक दिया , जहां के वे निवासी हैं। लेकिन वहां भी उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई और अभिलाष पांडे को उम्मीदवारी मिल गई जो खुद भी पश्चिम से टिकिट चाहते थे। उस फैसले के बाद से ही उनका मन खट्टा हो चला था । ऐसी संभावना थी कि विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद इस पद से हट जाएंगे। लेकिन गत 21 अक्टूबर को पार्टी के संभागीय कार्यालय में जो अभूतपूर्व घटना हुई उसके बाद से उनके लिए पद पर बने रहना असहज हो गया क्योंकि संगठन के जिन नेताओं के साथ उत्तर सीट की टिकिट का विरोध करने वालों ने अशोभनीय व्यवहार किया उन्होंने उस घटना के लिए श्री साहू को ही जिम्मेदार मान लिया जिससे उनको काफी धक्का लगा । और तभी से उन्होंने ये कहना शुरू कर दिया कि 17 नवंबर के बाद इस पद पर नहीं रहेंगे । आज इस्तीफे का ऐलान करते समय श्री साहू ने अपने अध्यक्ष बनते ही कुछ प्रभावशाली नेताओं द्वारा उनके विरुद्ध वातावरण बनाए जाने की बात भी कही किंतु किसी का नाम नहीं लिया । लेकिन अचानक पद छोड़ने का कारण उन्होंने जो बताया वह बेहद महत्वपूर्ण है। दरअसल गत दिवस श्री शाह के नगर आगमन पर टिकिट से वंचित उत्तर सीट के दो दावेदारों धीरज पटेरिया और शरद जैन को उनसे मिलवाकर शांत करवाए जाने से श्री साहू भड़क गए । उनका रोष इस बात को लेकर था कि इन दोनों के समर्थकों ने ही 21 तारीख को संभागीय कार्यालय में उपद्रव रचा । ऐसे में बजाय अनुशासन की कार्रवाई होने के उनको महत्व दिया गया । दूसरी तरफ नगर अध्यक्ष के रूप में उन्होंने उस दिन नाराज कार्यकर्ताओं को शांत करने की भरपूर कोशिश की किंतु उनको ही ऊपर बैठे नेता करूरवार मान रहे हैं। ऐसे में उनका पद पर रहना उचित नहीं है। श्री साहू द्वारा शिवराज सिंह चौहान को अपना नेता मानते रहने के घोषणा करते हुए ये भी कहा कि वे पार्टी नहीं छोड़ेंगे और चुनाव में जो दायित्व दिया जावेगा उसका निर्वहन करेंगे। लेकिन 21 अक्टूबर की घटना की जांच हेतु प्रदेश संगठन से मांग कर ये संकेत भी दे दिया कि वे शांत नहीं बैठेंगे । इस्तीफा देते समय उनके द्वारा घटना की जांच कराए जाने के साथ ही शिवराज जी को नेता मानते रहने की बात कहने से संकेत मिला है कि वे प्रदेश स्तर पर पार्टी में व्याप्त गुटबाजी के साथ जुड़ रहे हैं। उल्लेखनीय है उन्हें मुख्यमंत्री के साथ ही केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय का करीबी में जाता रहा है। लेकिन आज उन्होंने अपने को पहला ओबीसी नगर अध्यक्ष बताते हुए जो दांव चला उसका निहितार्थ आसानी से समझा जा सकता है। उनके इस कदम से नगर भाजपा अचानक नेतृत्व विहीन हो गई है। सांसद राकेश सिंह खुद पश्चिम में फंसे हैं और दूसरा कोई नेता ऐसा है नहीं जो स्थिति को संभाल सके। हो सकता है मुख्यमंत्री के समझाने पर वे इस्तीफा वापिस ले लें।किंतु 21 अक्टूबर का जिन्न भाजपा की स्थानीय राजनीति का पीछा नहीं छोड़ेगा , ये तय है। सुना है प्रदेश संगठन मंत्री हितानंद शर्मा ने श्री साहू को उस हंगामे के लिए जिम्मेदार बताकर कार्रवाई की चेतावनी दी थी। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी हाईकमान को शिकायत की। इसीलिए गत दिवस जिनके कारण वह हंगामा हुआ , उन्हें गृहमंत्री से मिलवाकर एक तरह से नगर अध्यक्ष को उपेक्षित रखा गया । कुल मिलाकर नगर भाजपा की स्थिति एक को मनाओ तो दूजा रूठ जाता है , जैसी हो गई है। संभागीय संगठन मंत्री की व्यवस्था नहीं होने से पार्टी में संवाद हीनता का आलम है।
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