जातीय जनगणना के आंकड़ों पर नीतीश की पार्टी में ही मतभेद जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ने भी बताया गलत सवर्णों की संख्या आधी रहने से उठ रहे सवाल

जातीय जनगणना के आंकड़ों पर नीतीश की पार्टी में ही मतभेद जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ने भी बताया गलत सवर्णों की संख्या आधी रहने से उठ रहे सवाल
जातीय जनगणना के आंकड़ों पर नीतीश की पार्टी में ही मतभेद जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा ने भी बताया गलत सवर्णों की संख्या आधी रहने से उठ रहे सवाल

पटना (एजेंसी)।बिहार में जारी की गई जातीय जनगणना की रिपोर्ट पर सियासत तेज हो गई है। वही इस पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं। सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों को अब तक विपक्ष ही गलत ठहरा रहा था किंतु अब इस पर सत्ता पक्ष के लोग भी प्रश्न खड़ा करने लगे हैं।आंकड़े जारी होने के बाद से भाजपा जातीय जनगणना के आंकड़ों पर सवाल खड़ा रही थी तो अब जनता दल यूनाइटेड के ही एक नेता ने इस रिपोर्ट को गलत बताते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिख दिया है। जदयू की प्रदेश महासचिव प्रगति मेहता ने इस रिपोर्ट को गलत बताया है. रिपोर्ट को लेकर एकतरफ तो कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ सवर्णों की आबादी घटने पर भी चिंता जाहिर की जा रही है।

जातीय जनगणना की रिपोर्ट को भाजपा ने हड़बड़ी में तैयार की गई बताते हुए आरोप लगाया था कि यह रिपोर्ट आधी अधूरी है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी इस रिपोर्ट पर प्रश्न उठाए थे।उपेंद्र कुशवाहा ने तो इस रिपोर्ट को धरातल से कोसों दूर और राजनीति से प्रेरित बताया था।इसके बाद जदयू नेता ने ही इस रिपोर्ट को पर सवाल खड़ा कर दिया है।वहीं कई लोग भी इसको कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. उनका कहना है कि उनके घर सर्वे की टीम आई हीं नहीं तो रिपोर्ट कैसे आ गया।वहीं बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े किए हैं और पूछा है कि आखिर सवर्णों की संख्या इतनी कम कैसे हो गयी? उन्होंने लिखा है कि आखिर जो सवर्ण 2022 तक 22 फीसदी थे, वे अब 11 फीसदी पर कैसे आ गये ? फजीहत झेल रही बिहार सरकार ने उन लोगों से कहा है कि वे अपनी शिकायत दर्ज कराएं जिनके घर सर्वे की टीम नहीं पहुंची है।जातीय जनगणना पर उठ रहे तमाम सवालों के बीच बिहार सरकार ने ये ऐलान कर दिया है कि जिस भी इलाके में गड़बड़ी हुई है, उस इलाके के जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाएगी। बिहार सरकार के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि जिन घरों-मोहल्लों या परिवार तक सर्वे टीम नहीं पहुंची होगी उस इलाके के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी.

राजनीतिक पंडितों के अनुसार जातिगत जनगणना की मांग के पीछे एक बड़ा सियासी मकसद है।देश में मंडल कमीशन की रिपोर्ट 1991 में लागू की गई, लेकिन 2001 में हुई जनगणना में जातियों की गिनती नहीं की गई. लेकिन पिछले दो दशकों में ओबीसी की संख्या बेहद तेजी से बढ़ी है जिसने देश की राजनीति के समीकरणों को भी बदलकर रख दिया है। ओबीसी का सियासत में भी तेजी से दखल बढ़ा है. केंद्र से लेकर राज्यों तक की सियासत में ओबीसी समुदाय की राजनीतिक दलों को भी उनके बीच अपनी पैठ जमाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

चूंकि बिहार में ओबीसी के बीच आरजेडी का प्रभाव तेजी से बढ़ा है, लिहाज़ा नीतीश भी ये जानना चाहते हैं कि आखिर उनके राज्य में कितने ओबीसी वोटर हैं, ताकि उनका विश्वास हासिल करने के लिये उसी हिसाब से आगे की राजनीति की जाये. जातीय जनगणना को इस दृष्टि से भी देखा जा सकता है.