इंडिया : हाथ मिलने के बाद भी दिल मिलते नहीं दिख रहे 

इंडिया : हाथ मिलने के बाद भी दिल मिलते नहीं दिख रहे 
इंडिया : हाथ मिलने के बाद भी दिल मिलते नहीं दिख रहे 

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए बनाए गए इंडिया नामक विपक्षी दलों के गठबंधन की तीसरी बैठक गत दिवस मुंबई में संपन्न हुई । इसमें एक बार फिर ये भाव उभरकर आया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए गैर भाजपाई दलों की एकता ही एकमात्र उपाय है। बैठक से हासिल क्या हुआ ये कह पाना तो कठिन है लेकिन जुड़ेगा भारत जीतेगा इंडिया, जैसा नारा जरूर तय हो गया। इसके अलावा 14 सदस्यों वाली समन्वय समिति भी गठित हुई किंतु संयोजक पर मतैक्य न होने से निर्णय को टाल दिया गया। इसका कारण विभिन्न नेताओं की महत्वाकांक्षाओं में टकराव को माना जा रहा है । वैसे तो सभी नेता कहते रहे हैं कि वे इस पद हेतु दावेदार नहीं हैं किंतु वास्तविकता ये है कि कांग्रेस येन केन प्रकारेण अपना संयोजक बनाना चाहती है किंतु आम आदमी पार्टी जैसे छोटे दल भी कांग्रेस की अगुआई में काम करने के इच्छुक नहीं हैं । पार्टी के एक दो नेताओं ने तो अरविंद केजरीवाल को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश करने तक की मांग कर डाली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी संयोजक बनने के लिए लालायित हैं । लेकिन भीतरी तौर पर लालू प्रसाद यादव उनके नाम पर राजी नहीं हैं जो नीतीश को राष्ट्रीय नेता बनते नहीं देखना चाहते। एक परेशानी ये भी है कि यदि मल्लिकार्जुन खरगे या नीतीश संयोजक बनते हैं तो ये शरद पवार खेमे को अपमानजनक महसूस होगा । हालांकि ये भी सही है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर कांग्रेस छोड़ राकांपा बनाए जाने का उनका दांव गांधी परिवार भूला नहीं है। और फिर अडानी मामले में जेपीसी की मांग को निरर्थक बताने और फिर वीर सावरकर के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियां करने से राहुल गांधी को रोकने जैसे उनके कदमों से भी कांग्रेस चौकन्ना है। अपने भतीजे अजीत के भाजपा की गोद में बैठ जाने के बावजूद उनसे मिलते रहने की वजह से वे अन्य विपक्षी नेताओं के बीच भी अविश्वसनीय हो चले हैं। ऐसे में इंडिया के लिए संयोजक तय करना मुश्किल होता जा रहा है। यही समस्या सीटों के बंटवारे को लेकर है। श्री केजरीवाल ने बैठक में ये मांग कर डाली कि इस मुद्दे पर तत्काल फैसला किया जाए । लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गई। जिस तरह की जानकारी अंदरखाने से आई हैं उनके अनुसार कांग्रेस संयोजक और सीट बंटवारे को म.प्र,छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव तक टालना चाहती है। दरअसल उसे उम्मीद है कि वह कर्नाटक की तरह से ही उक्त तीनों राज्य जीतने जा रही है । और तब संयोजक और सीट बंटवारे के निर्णय में उसका हाथ ऊपर रहेगा। इस प्रकार भले ही राहुल गांधी कितनी भी उदारता दिखाते हुए विपक्षी एकता के प्रति समर्पण भाव व्यक्त करें किंतु गठबंधन का स्वरूप नैसर्गिक कम कृत्रिम ज्यादा नजर आ रहा है । दूसरे शब्दों में कहें तो ये मजबूरी से उपजी जरूरत है। यही वजह है कि मोदी विरोध के नाम पर एक साथ बैठने के बाद भी नेता और सीटों के बंटवारे पर निर्णय नहीं हो पा रहा। इस बारे में अनेक राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही पचास से ज्यादा नेता इंडिया की बैठक में शामिल होते हैं किंतु जब श्री मोदी के मुकाबले के लिए किसी को सामने लाने का सवाल उठता है तब एक खालीपन महसूस होने लगता है। गठबंधन में ये डर भी देखा जा रहा है कि संयोजक को प्रधानमंत्री पद का चेहरा मान लिए जाने से पूरा मुकाबला इकतरफा हो जाएगा क्योंकि व्यक्तित्व के मामले में प्रधानमंत्री सब पर भारी पड़ते हैं। मुंबई में हुई बैठक के पहले जो माहौल बनाया गया उसे देखकर लग रहा था कि उसमें ठोस निर्णय होंगे किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ और पांच सितारा होटल में बैठकर गरीबी और बेराजगारी पर केंद्र सरकार की आलोचना कर बैठक खत्म हो गई। गठबंधन की पटना बैठक के बाद श्री पवार की पार्टी टूट गई और मुंबई के जमावड़े के दौरान ही संसद के विशेष सत्र की खबर ने खलबली पैदा कर दी। उस पर भी कपिल सिब्बल के बिना बुलाए पहुंच जाने के कारण पैदा हुआ विवाद इस बात का संकेत दे गया कि हाथ मिलाए जाने के बावजूद अभी दिल नहीं मिले। अगली बैठक कब होगी और संयोजक बनेगा या केवल समन्वय समिति बनाकर सामूहिक नेतृत्व का प्रयोग होगा , इन प्रश्नों का उत्तर फिलहाल नहीं मिल रहा। सीटों के बंटवारे को जिस तरह से कांग्रेस टरका रही है उसकी वजह से भी अविश्वास बरकरार है। आम आदमी पार्टी जिस प्रकार से दबाव बना रही है उससे बाकी पार्टियां भी परेशान हैं क्योंकि श्री केजरीवाल की महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने की है जिसे न कांग्रेस भाव देगी , न ही ममता बैनर्जी और नीतीश कुमार। जिन तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव आगामी महीनों में होने जा रहे हैं उनमें आम आदमी पार्टी जिस प्रकार से पैर पसार रही है उससे कांग्रेस परेशान है । लेकिन श्री केजरीवाल को रोकने का साहस भी नहीं बटोर पा रही। ऐसा लगता है संसद के विशेष सत्र की घोषणा ने गठबंधन को रुको , देखो और फिर आगे बढ़ने के लिए बाध्य कर दिया है। मुंबई बैठक के तकरीबन बेनतीजा खत्म होने से ये बात साबित भी हो गई।