लक्षद्वीप की प्रशंसा के जरिए मोदी द्वारा मालदीव की रीढ़ पर कड़ा प्रहार 

लक्षद्वीप की प्रशंसा के जरिए मोदी द्वारा मालदीव की रीढ़ पर कड़ा प्रहार 
लक्षद्वीप की प्रशंसा के जरिए मोदी द्वारा मालदीव की रीढ़ पर कड़ा प्रहार 

 

 

हिन्द महासागर में स्थित द्वीपनुमा देश मालदीव इन दिनों चर्चा में है। कुछ समय पहले वहां चीन समर्थक मोहम्मद मुइज्जू राष्ट्रपति चुन लिए गए। उनके चुनाव प्रचार में भारत विरोध स्पष्ट रूप से झलक रहा था। जबकि पूर्ववर्ती राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह खुलकर भारत के साथ थे। मुइज्जू ने चुनाव जीतने के साथ ही वहां मौजूद भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने की मांग कर डाली। दरअसल वहां कुछ ऐसे काम चल रहे हैं जिनके कारण भारतीय सेना के कुछ लोग मालदीव में हैं। हेलीकाप्टर एवं कुछ अन्य उपकरणों के संचालन के लिए दोनों देशों में हुए समझौते के अंतर्गत वे सैनिक वहां पदस्थ हैं । हालांकि ये संख्या इतनी बड़ी नहीं कि उसके आंतरिक मामलों में दखल दे सके। मुस्लिम बहुल मालदीव के साथ भारत के रिश्ते काफी अच्छे रहे। इस देश की मुख्य आय पर्यटन है । यहां के समुद्र तट बेहद खूबसूरत हैं। चूंकि भारत से यह देश करीब है इसलिए यहां से प्रतिवर्ष लाखों सैलानी मालदीव घूमने जाते रहे हैं। अनेक भारतीय फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है। लेकिन राष्ट्रपति मुइज्जू ने जब भारत विरोधी मोर्चा खोला तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीप नामक भारतीय टापू की यात्रा के दौरान वहां के समुद्र तट पर घूमते अपने चित्रों के साथ भारतीय सैलानियों को लक्षद्वीप आने की समझाइश देते हुए उसके प्राकृतिक सौंदर्य की प्रशंसा कर डाली। वैसे भी प्रधानमंत्री जहां जाते हैं वहां की खूबियों का बखान करना नहीं भूलते। कुछ समय पहले वे उ.प्र के पिथौरागढ़ में स्थित आदि कैलाश गए थे जहां से तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत नजर आता है। उनकी इस यात्रा के चित्र प्रसारित होते ही आदि कैलाश एक नए पर्यटन केंद्र के तौर पर प्रसिद्ध हो गया। 2019 के लोकसभा चुनाव का प्रचार बंद होते ही प्रधानमंत्री केदारनाथ की एक गुफा में जाकर रहे जिसके बाद उस धाम और गुफा दोनों के प्रति रुचि बढ़ी जिसका परिणाम वहां जाने वालों की संख्या में हुई अकल्पनीय वृद्धि के रूप में सामने आया। श्री मोदी ने घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गुजरात में सरदार पटेल की जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी बनवाई उस पर हुए खर्च को लेकर तमाम आलोचनाएं हुईं किंतु उस प्रकल्प के पूर्ण होते ही वह स्थान देश के प्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो गया। वाराणसी में विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल मंदिरों के परिसर का उन्नयन भी कुछ लोगों को रास नहीं आ रहा था किंतु आज उसके चमत्कारिक लाभ देखने मिल रहे हैं। हालांकि श्री मोदी के मन में लक्षद्वीप के पर्यटन को बढ़ावा देने का भाव था या आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर वहां के मतदाताओं को लुभाने की सोच , ये तो वही जानें किंतु उनकी सहज टिप्पणी पर मालदीव की नई सरकार के कुछ मंत्रियों के हल्के स्तर के बयानों के बाद से मालदीव और लक्षद्वीप के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। भारत में जिस तेजी से मालदीव के बहिष्कार और लक्षद्वीप के प्रति उत्सुकता उत्पन्न हुई उसने मालदीव की अकड़ ढीली कर दी। राष्ट्रपति मुइज्जू ने चीन की यात्रा पर रवाना होने से पहले ही भारत और मोदी विरोधी टिप्पणी करने वाले तीन मंत्रियों की छुट्टी करते हुए विवाद को ठंडा करने का प्रयास किया किंतु तब तक उसे जो नुकसान होना था वह तो हो ही चुका था। मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटकों द्वारा यात्रा रद्द होने की खबरें आने लगीं। इसी के साथ ही लक्षद्वीप के प्रति जबरदस्त रुझान देखा जाने लगा। अनेक अभिनेताओं और प्रमुख हस्तियों द्वारा मालदीव की बजाय लक्षद्वीप को प्राथमिकता देने की अपील किए जाने से मुइज्जू सरकार सकते में आ गई। भारत सरकार ने भी उनके राजदूत को बुलाकर कड़े शब्दों में समझा दिया। सबसे बड़ी बात ये हुई कि मालदीव के भीतर ही नए राष्ट्रपति के भारत विरोधी रवैए की आलोचना शुरू हो गई। उनको याद दिलाया जाने लगा कि दशकों पहले जब श्रीलंका से चीन की शह पर आए सशस्त्र आतंकवादियों ने मालदीव पर कब्जा कर लिया तब भारतीय सेना ने जाकर ही उनको वहां से भागने मजबूर किया था। कुल मिलाकर इस घटनाक्रम में प्रधानमंत्री श्री मोदी की दूरदर्शिता और भारत की कूटनीतिक दृढ़ता एक बार फिर प्रमाणित हो गई । मालदीव की नई सरकार के भारत विरोधी रुख के जवाब में प्रधानमंत्री ने लक्षद्वीप के समुद्र तट पर टहलते हुए थोड़े शब्दों में जो कुछ कहा उसका इतना बड़ा असर होगा ये किसी ने नहीं सोचा था। राष्ट्रपति मुइज्जू के भारत विरोधी बयानों का सीधा जवाब देने के बजाय उन्होंने मालदीव की पर्यटन रूपी रीढ़ पर प्रहार कर दिया। निश्चित रूप से ये बहुत ही चतुराई भरा दांव था जिसका जबरदस्त असर देखने मिला। भले ही राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज्जू सबसे पहले चीन की यात्रा पर गए हों किंतु नई दिल्ली के कड़े रुख के बाद उनको ये तो महसूस हो ही गया होगा कि भारत से ऐंठना उतना सरल नहीं जितना वे समझ बैठे थे।