किसी को टक्कर मारकर भाग जाने (हिट एंड रन) जैसे कृत्य के लिए 10 लाख रु. का जुर्माना और सात साल की सजा का जो प्रावधान हाल ही में किया गया उसके विरोध में म. प्र सहित अनेक राज्यों के ट्रक , बस और टैंकर चालक बीते दो दिनों से हड़ताल पर हैं । इसके कारण जरूरी चीजों की आपूर्ति प्रभावित होने के साथ ही यात्रियों को भी भारी परेशानी हो रही है। पेट्रोल पंप खाली हो जाने से निजी वाहन चालक भी मुसीबत झेलने मजबूर हैं। । वाहन चालकों का तर्क है कि गलती न होने पर भी घटनास्थल पर उपस्थित जनता टक्कर मारने वाले चालक की बेरहमी से पिटाई करती है। अनेक चालकों की तो मौत भी पिटाई से हुई। वाहन में आग लगाने जैसी वारदात भी आम हैं। इसलिए घटनास्थल पर रुके रहना जान के लिए खतरनाक होता है । चालकों ने उन्हें मिलने वाले वेतन , भत्ते एवं अन्य सुविधाओं को बेहद कम बताते हुए सजा के नए प्रावधान वापस लेने की बात कही है। उनके तर्क विश्लेषण का विषय हैं किन्तु इतना तो है कि टक्कर मारने वाले चालक के रुक जाने पर उसकी और वाहन दोनों की खैर नहीं होती । और बड़े वाहन वाले को ही गलत ठहराकर गुस्सा उतारा जाता है। लेकिन दूसरा पहलू ये भी है कि टक्कर होने के बाद अपनी रक्षा के लिए भागे चालक को निकटस्थ पुलिस थाने में जाकर घटना की जानकारी देते हुए कानून की शरण लेनी चाहिए। यदि वाहन का समुचित बीमा हो तो उसमें दुर्घटना का मुआवजा देने की व्यवस्था भी रहती है। लेकिन इसके लिए वाहन संबंधी कागजात तथा चालक का लायसेंस नियमानुसार होना चाहिए। ज्यादातर मामलों में चूंकि ये चीजें दुरुस्त नहीं होतीं , इसलिए भी दुर्घटना के बाद चालक घटनास्थल पर नहीं रुकते। कुछ दिन पूर्व जबलपुर के निकट बरगी में किसी अज्ञात वाहन ने एक मोटर सायकिल को टक्कर मारी और बिना रुके चला गया। मोटर सायकिल पर बैठी तीन सवारियों में से एक महिला की मौत हो गई। दोपहिया वाहन पर तीन लोगों को बिठाना भी गैर कानूनी है। ऐसे में दुर्घटना का दोषी मोटर सायकिल चलाने वाले को कहा जाए या उस अज्ञात वाहन चालक को जो टक्कर होने के बाद फुर्र हो गया? ऐसे अनेक सवाल इस हड़ताल से उठ खड़े हुए हैं। हमारे देश में सड़क परिवहन में सुरक्षा का सवाल आए दिन उठता है। प्रतिवर्ष लाखों लोग दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। उच्चस्तरीय राजमार्गों के विकास के बाद सड़क परिवहन में अकल्पनीय वृद्धि हुई है। तकनीकी दृष्टि से उत्कृष्ट वाहन भी भारतीय सड़कों पर नजर आते हैं। लेकिन इन महंगे वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबरें भी नित्य मिलती हैं। प्रसिद्ध उद्योगपति सायरस मिस्त्री की मौत जिस कार दुर्घटना में हुई वह दुनिया की बेहतरीन कारों में गिनी जाती थी। ये सब देखते हुए देश में सड़क परिवहन को सुरक्षित रखने के पुख्ता प्रबंध भी करना होंगे। जिन राज्यों में गोवंश को काटे जाने पर प्रतिबंध है वहां राजमार्गों पर गायों के झुंड दुर्घटना का कारण बन जाते हैं। जिस वाहन से टकराकर गाय घायल होती या मारी जाती है उसका चालक भी तेजी से भाग जाता है क्योंकि रुकने पर वहां मौजूद लोग उसकी पिटाई करने के साथ ही बतौर मुआवजा मोटी रकम भुगतान करने का दबाव बनाते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में हड़ताल करने वाले चालकों के पक्ष को भी गंभीरता से समझने की ज़रूरत है। हमारे देश में माल ढोने वाले वाहनों के अलावा व्यवसायिक यात्री वाहन लगातार सड़कों पर दौड़ते हैं। जिन क्षेत्रों में रेल सुविधा नहीं हैं उनके लिए तो सड़क यातायात ही एकमात्र विकल्प है। ग्रामीण सड़कों के विकास की वजह से अब गांव भी बैलगाड़ी युग से बाहर आ चुके हैं। इसीलिए दुर्घटनाएं भी समाचारों का स्थायी हिस्सा बन गई हैं। हड़ताल तो शासन – प्रशासन समझा – बुझाकर खत्म करवा लेगा और वाहन मालिक भी ज्यादा दिन तक अपनी गाड़ी को खड़ा नहीं रख सकते। लेकिन इन वाहनों की फिटनेस और जरूरी दस्तावेजों के अलावा चालक का समुचित प्रशिक्षण और लायसेंस जैसी अनिवार्य चीजों पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि सभी दुर्घटनाओं में वाहन चालक निर्दोष हो , ये जरूरी नहीं हो सकता। ये बात जरूर सोचने वाली है कि टक्कर होने के बाद चालक और वाहन को नुकसान पहुंचाने वालों के विरुद्ध भी कड़ाई होनी चाहिए क्योंकि किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की छूट नहीं दी जा सकती। चालकों की हड़ताल से जो मुद्दे सामने आए हैं उन पर सरकार को गंभीरता से विचार करते हुए यदि नए प्रावधानों में कुछ विसंगति है तो उसे दूर करने में हिचक नहीं होनी चाहिए।