पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने के बाद मुख्यमंत्री भी शपथ ले चुके हैं। जल्द ही मंत्रीमंडल भी आकार ले लेंगे। मिजोरम तो ज्यादा चर्चा में नहीं रहा किंतु तेलंगाना , म.प्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में लोगों की उत्सुकता बनी रही। भाजपा और कांग्रेस जीत हार का विश्लेषण करने में जुटी हैं जिससे कि लोकसभा चुनाव के लिए सटीक रणनीति बनाई जा सके। इसमें दो राय नहीं हैं कि हिमाचल और कर्नाटक में मिली हार के बाद भाजपा दबाव में थी। उधर विपक्ष भी इंडिया गठबंधन के रूप में एकजुट होने लगा था। लेकिन तीन राज्यों की जीत ने भाजपा का मनोबल बढ़ा दिया है। और इसीलिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मुख्यमंत्री चयन करने में सबको चौंका दिया। कांग्रेस द्वारा उक्त चारों राज्यों में जातीय जनगणना करवाए जाने का जो वायदा किया उसका उद्देश्य ओबीसी और दलितों को लुभाना था। इसीलिए तीन राज्यों में भाजपा द्वारा क्रमशः आदिवासी , ओबीसी और सवर्ण मुख्यमंत्री बनाए जाने के साथ ही जो दो – दो मुख्यमंत्री बनाए गए उनमें भी जातीय संतुलन का जबरदस्त ध्यान रखा जिसके कारण जाति की राजनीति करने वाले क्षेत्रीय दल सकते में आ गए हैं। लेकिन असली मुद्दा जो उक्त चार राज्यों में चर्चित रहा वह था मुफ्त उपहारों का ऐलान। तेलंगाना में के. सी राव की बीआरएस सत्ता में थी जबकि म.प्र में भाजपा और राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कब्जे में थे। इन चारों राज्यों की सरकारों ने जनकल्याण के नाम पर जिस तरह की योजनाएं और कार्यक्रम लागू कर किए उनकी वजह से सरकारी खजाने पर जबरदस्त बोझ पड़ रहा था। रही – सही कसर पूरी कर दी चुनावी वायदों ने। हालांकि चुनाव परिणामों से मिले संकेत विरोधाभासी हैं। उदाहरण के लिए म.प्र अकेला राज्य है जहां मुफ्त और नगद राशि देने वाली योजनाएं भाजपा की सत्ता में वापसी का आधार बन गईं किंतु तेलंगाना , राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों द्वारा दोनों हाथों से खजाना लुटाए जाने के बावजूद वे बुरी तरह चुनाव हार गईं। इसीलिए म.प्र में शिवराज सरकार की जिस लाड़ली बहना योजना को चुनाव जिताऊ माना गया उस पर अनेक भाजपा नेताओं ने ही सवाल खड़े करते हुए कहा कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो भाजपा विपक्ष में रहते हुए ही जीती । इसका अर्थ ये हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चला गया मोदी की गारंटी वाला दांव ज्यादा कारगर साबित हुआ। तेलंगाना में चूंकि भाजपा का संगठन उतना सुदृढ़ नहीं है वरना वहां भी भाजपा को सत्ता मिलती। बहरहाल, अब भाजपा और कांग्रेस दोनों के सामने ये समस्या आ खड़ी हुई है कि वे उन वायदों को कैसे पूरा करेंगे जबकि खजाना तो पहले से ही खस्ता हालत में हैं। जो जानकारी आई है उसके अनुसार उक्त राज्यों में वेतन और पेंशन बांटने में रुकावट आ रही है । विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के अन्तर्गत मिलने वाली धनराशि महीनों से हितग्राहियों के खाते में जमा नहीं हुई। शिवराज सिंह इस बात को संभवतः भांप चुके थे इसीलिए उन्होंने भूतपूर्व होने के दो दिन पहले ही लाड़ली बहना की राशि हितग्राहियों के खातों में जमा करवा दी। इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने जिस तरह के मुफ्त उपहारों का वायदा किया उनको पूरा करने के लिए संसाधन कहां से आयेंगे इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। इस बारे में रोचक बात ये है कि विपक्ष में बैठी पार्टी सत्ता पक्ष पर खजाना खाली करने का आरोप लगाती है किंतु सत्ता में आने के लिए वह भी ऐसे ही प्रलोभन देने में पीछे नहीं रहती। उदाहरण के लिए म.प्र को ही लें तो यहां चुनाव के कई महीने पहले कांग्रेस नेत्री प्रियंका वाड्रा ने उन्हीं पांच गारंटियों का ऐलान कर दिया जिनके दम पर पार्टी को हिमाचल और कर्नाटक में सफलता हासिल हुई थी। भाजपा चूंकि उक्त राज्य गंवा चुकी थी अतः उसने बिना देर लगाए लाड़ली बहना योजना लागू कर दी और 450 रु. में रसोई गैस सिलेंडर देना शुरू कर दिया। हालांकि कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन योजना लागू करने का वायदा भी किया किंतु शिवराज सरकार ने जो पहल की उसके कारण कांग्रेस के वायदे हवा में झूलते रह गए। अब आम जनता सवाल पूछ रही है कि यदि गैस सिलेंडर 450 रु. में देने से सरकार को कोई नुकसान नहीं होता तो फिर सभी को ये फायदा मिलना चाहिए और यदि नुकसान हो रहा है तो कितने समय तक वह ये बोझ उठा सकेगी , ये सवाल राष्ट्रीय विमर्श का विषय बनता जा रहा है। प्रधानमंत्री श्री मोदी खुद रेवड़ी राजनीति की आलोचना कर चुके हैं । लेकिन जिस तरह आरक्षण के बारे में कोई भी पार्टी किसी प्रकार का खतरा नहीं उठाना चाहती ठीक वैसे ही मुफ्त उपहारों की योजनाओं को शुरू करने के बाद रोकना या वापस लेना खतरे से खाली नहीं है। ऐसा लगता है सर्वोच्च न्यायालय को ही स्वतः संज्ञान लेते हुए इस बंदरबांट पर रोक लगानी पड़ेगी वरना आर्थिक प्रगति के सारे आंकड़े मुफ्तखोरी के खेल में उलझकर रह जाएंगे।
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