समरसता सेवा संगठन ने भगवान सहस्त्रबाहु जयंती पर किया विचार गोष्टी एवँ सम्मान समारोह का आयोजन
जबलपुर, का. सं.। भारत के इतिहास के साथ की गई छेड़छाड़ के कारण देश में जाति भेद को बढ़ावा मिला और लोग सिर्फ जातियों में विभक्त नहीं हुए बल्कि लोगो ने अपने अपने जातियों के आराध्य बना लिए जो सबके थे उन्हें सीमित कर दिया, इसे दूर करने और जातिवाद तोड़ने के लिए समरसता से अच्छा कोई कार्य नहीं है और यह कार्य यह संगठन बहुत अच्छे से कर रहा है यह बात समरसता सेवा संगठन द्वारा भगवान सहस्त्रबाहु जयंती के अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता इतिहासकार डॉ आनंद सिंह राणा ने होटल श्रीराधा सिविक सेंटर में कही। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री रजनीश गुप्ता ( सहायक महाप्रबंधक आयुध निर्माणी खमरिया), मुख्य वक्ता वरिष्ठ इतिहासकार डॉ आनंद सिंह राणा एवँ समरसता सेवा संगठन के अध्यक्ष श्री संदीप जैन मंचासीन थे। कार्यक्रम का शुभारंभ भारतमाता, भगवान श्रीराम, नर्मदा जी एवं भगवान सहस्त्रबाहु के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुई। कार्यक्रम के प्रथम चरण में वक्ताओं ने विचार गोष्ठी को संबोधित किया। दूसरे चरण में सामजिक जनो का सम्मान किया गया। मुख्य वक्ता इतिहासकार प्रो आनंद सिंह राणा ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा सब सबको जाने सब सबको माने के धेय्य को लेकर चल गतिमान संगठन समरसता सेवा संगठन के द्वारा आयोजित कार्यक्रम भगवान 4 सहस्त्रबाहु जयंती को हम मना रहे है। उन्होंने कहा भगवान सहस्त्रबाहु जो विष्णु का 24 वें अंश चक्र अवतार थे जो शिव का अंश थे उनका वध कैसे हो सकता है, यह विवाद की स्थिति पैदा करने विषय था, इतिहासकारों ने भ्रम बनाया, यह सिर्फ लोगो को भ्रमित करने के लिए फैलाई गई भ्रांति है। जो अंश अवतार है उनका वध नही किया जा सकता जब तक वह स्वयं अपना शरीर न त्यागने का निर्णय न ले। योग बल से उन्होंने अपने पार्थिव शरीर को त्यागा था। उन्होंने कहा भगवान सहस्त्रबाहु ने क्रीड़ा के चलते नर्मदा नदी को अपनी हजार बांहों से रोका था और जब उन्हें पता चला कि नर्मदा तट में रावण पूजन करने आया है तब उन्होंने अपनी बांहे खोल दी और आपार जल से रावण की पूरी सेना बह गई और पूरा दक्षिणावृत राक्षसों से विहीन हो गया और रावण सिर्फ लंका में जाकर सीमित हो गया।
भारत मे सुख समृद्धि शांति की स्थापना में भगवान सहस्त्रबाहु का योगदान था। देश के प्रथम महारथी भगवान सहस्त्रबाहु थे। जो नरेटिव बनाया गया उसे बदलने की आवश्यकता है लोगो को जाग्रत करने की आवश्यकता है, जाति समुदाय की लड़ाई को रोकने की आवश्यकता है और समरसता के माध्यम से हम इस नरेटिव को बदल सकते हैं और समरसता सेवा संगठन ने इसकी शुरुआत की है। समरसता की स्थिति जब निर्मित हो रही है तो हमे अपने इतिहास को जानना और पढ़ना चाहिए और समझना चाहिए। मुख्य अतिथि सहायक प्रबंधक आयुध निर्माणी खमरिया श्री रजनीश गुप्ता ने विचार गोष्टी को संबोधित करते हुए कहा हमारी धर्म परंपरा ने चार वर्णों के उल्लेख किया गया है यहाँ जाति व्यवस्था नही थी जो लोग जिस कार्य को अच्छे से और रुचि से करते थे उन्हें उस कार्य के आधार पर जाति से जोड़ दिया जाता था और यह सिर्फ पहचान के लिए था किंतु कालांतर में बाहरी आक्रांताओं ने देश पर कब्जा करने के उद्देश्य से जातिवाद को बढ़ावा दिया और लोगो के साथ साथ महापुरुषों को भी बांट दिया इसे दूर करने और लोगो के जोड़ने जा कार्य समरसता सेवा संगठन द्वारा किया जा रहा है यह अच्छी पहल है। संगठन अध्यक्ष संदीप जैन ने कार्यक्रम के संदर्भ में अपनी बात रखते हुए कहा हमारा उद्देश्य सब
सबको जाने सबको माने है। हमारे महापुरुष, आदि पुरुष हुए उनने अपना संदेश सर्व समाज को दिया है। इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई और गलत जानकारी परोसी जा रही है इसीलिए भारत की सनातन संस्कृति के बारे में बहुत अच्छे से जाने और अच्छे से माने। सम्मान कार्यक्रम में मुरारीलाल ताम्रकार, राजेश जायसवाल, सुबोध पैंगवार, प्रदीप चौकसे, प्रमोद रामकृष्ण ताम्रकार, मनोज जसाठी, योगेश पैगवार, प्रमोद वर्मा, प्रीति ताम्रकार, प्रकाश ताम्रकार, लखन महलावर, नंदा ताम्रकार, अतुल ताम्रकार, सुधीर ताम्रकार, अभय ताम्रकार, अजय ताम्रकार, अनिल ताम्रकार, राजेन्द्र ताम्रकार, श्यामलाल मंजुलता ताम्रकार अभिषेक जसाठी, प्रतिभा पंडा, मोहन ताम्रकार, साकेत ताम्रकार, अमित गुप्ता, दिनेश शिवहरे, जायसवाल, ज्योति राय, रेखा चौकसे आदि का सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में डॉ वाणी अहलूवालिया, आलोक पाठक, संजय यादव, प्रमोद पंडा, कौशल किशोर दुबे, नंदा वर्मा, रलेश मिश्रा, शैलेश साहू, कृष्णकुमार उमरे, संजय गोस्वामी, करोड़ीलाल अग्रवाल, सुरेश पांडे, परमवीर सिंह, कैलाश कोष्टा, पुनीत मिश्रा, विजय चौरसिया, मनीष शिवहरे, संदीप अग्रवाल, अतुल पांडे, प्रदीप पटेल, ओंकार रजक आदि बड़ी संख्या में गणमान्य जन उपस्थित थे।