संसार में बहुत से गुण हैं, और बहुत से दोष भी हैं। उन दोषों में से एक दोष है, जिसे ईर्ष्या द्वेष कहते हैं। जब कोई व्यक्ति पुरुषार्थ करता है, तो उसकी उन्नति होती है। यह उसके कर्म का फल है। ईश्वर का नियम है जो व्यक्ति कर्म करेगा, उसको फल अवश्य मिलेगा। परन्तु कुछ दूसरे लोग उसकी उन्नति को देखकर जलते हैं, और उसके काम में बाधाएं डालते हैं। ऐसे लोग मूर्ख दुष्ट एवं आलसी होते हैं। वे स्वयं तो कुछ करते नहीं और दूसरों की उन्नति देखकर जलन के कारण उनका काम भी अटकाते हैं। उन्हें ठीक ढंग से काम करने नहीं देते। ऐसे दुष्टों को अवश्य ही दंड मिलना चाहिए, ईश्वर न्यायकारी है। वह तो समय आने पर दंड देगा ही । परन्तु समाज के बुद्धिमान लोगों को भी इस दिशा में कुछ प्रयत्न अवश्य करना चाहिए, जिससे लोगों का जीवन आसान हो जाए। आपके सामने भी यह समस्या आती होगी। कुछ लोग आपकी उन्नति को देखकर जलते होंगे, और वे भी आपके काम में बाधाएं डालते होंगे। जब ऐसा हो, तब आप घबराएं नहीं। उन बाधाओं को दूर करने के लिए पूर्ण पुरुषार्थ करें। बल्कि पहले से सावधान रहें, कि कब कहां से कौन सी बाधा आ सकती है? उसका समाधान पहले से तैयार रखें। जब वह बाधा उपस्थित हो, तो तत्काल ही, पहले से सोचे हुए उस समाधान का प्रयोग करें। इससे आपकी बहुत सी समस्याएं हल हो जाएंगी, और आप बहुत कुछ सुखपूर्वक जी सकेंगे। यह कितने आश्चर्य की बात है, कि संसार में लोग जीवित मनुष्यों के काम में ही बाधाएं डालते हैं। क्योंकि मृत व्यक्तियों को तो क्या परेशान कर पाएंगे, वे तो अब रहे नहीं। और जिनकी मृत्यु हो गई, परन्तु अभी उनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ। यदि उनकी शवयात्रा जा रही हो, तो उन्हें उस शव से भी डर लगता है। इसलिए उसका रास्ता भी तत्काल छोड़ देते हैं। बाकी बचे जीवित मनुष्य उन्हीं को संसार के लोग ईर्ष्या द्वेष के कारण परेशान करते हैं । अतः ऐसी स्थिति में आप भी पहले से तैयार रहें, घबराएं नहीं, और बाधाओं से युद्ध करके उन्हें जीतें। तभी आप कुछ ठीक-ठाक ढंग से जीवन जी पाएंगे।
– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात