दक्ष प्रजापति की पुत्री सती ने शिव जी से विवाह कर लिया था । दक्ष शिव जी पसंद नहीं करता था और शिव जी को अपमानित करने का एक भी अवसर छोड़ता नहीं था। रामायण का एक प्रसंग है। एक दिन शिव जी सती के साथ रामकथा सुनकर लौट रहे थे। ये बात तब की है, जब सीता का अपहरण रावण ने कर लिया था। राम सीता के वियोग में थे, दुखी थे और सीता को खोज रहे थे।
शिव जी और सती ने राम को देखा तो शिव जी ने कहा कि हम जिन श्रीराम की कथा सुनकर हम लौट रहे हैं, उन्हीं के दर्शन यहां हो गए। शिव जी ने भगवान राम को दूर से ही प्रणाम किया और देवी सती से कहा कि आप भी श्रीराम को प्रणाम करें। सती का स्वभाव तर्क प्रधान था। वे हर बात में तर्क देखती थीं। उन्होंने शिव जी से कहा कि मुझे नहीं लगता ये राम भगवान हो सकते हैं, ये तो एक सामान्य इंसान की तरह रो रहे हैं। शिव जी ने समझाया कि राम जी पर संदेह न करें। ये सब उनकी लीला है। देवी सती ने शिव जी की बात नहीं मानी और उन्होंने तय किया कि वे राम की परीक्षा लेंगी। शिव जी तो वहां से चले गए, लेकिन सती ने सीता का रूप धारण किया और श्रीराम के सामने पहुंच गई।
श्रीराम ने देवी सती को देखते ही प्रणाम किया पूछा कि देवी आप अकेली यहां क्या कर रही और हैं, शिव जी कहां हैं? ये बात सुनते ही सती लज्जित हो गईं। इसके बाद वे शिव जी के पास पहुंचीं। शिव जी ने ध्यान लगाया तो वे जान गए कि सती ने मेरे आराध्य राम की परीक्षा ली है। इस बात की वजह से शिव जी ने सती का मानसिक त्याग कर दिया। इस घटना के कुछ समय बाद देवी सती ने पिता दक्ष के यहां यज्ञ कुंड में कूदकर आत्मदाह करके देह त्याग दी थी। शिव जी का वैवाहिक जीवन खत्म हो गया था।
कथा की सीख : इस कथा की सीख यह है कि पति-पत्नी को एक-दूसरे की बातों पर भरोसा करना चाहिए। अगर इस रिश्ते में भरोसा नहीं होगा तो रिश्ते का तालमेल बिगड़ जाएगा। तालमेल के बिना ये रिश्ता ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकता है। ईएमएस