संपादकीय- रवीन्द्र वाजपेयी
दिल्ली के बहुचर्चित शराब घोटाले की गुत्थी उलझती जा रही है। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया छह महीने से जेल में हैं। उनके अलावा कुछ व्यापारी एवं बिचौलिए भी सीखचों के भीतर किए जा चुके हैं। इसी सिलसिले में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को दो दिन पूर्व लंबी पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। दरअसल दिनेश अरोड़ा नामक आरोपी ने अदालत से सरकारी गवाह बनने की अनुमति मिलने के बाद ये खुलासा किया था कि शराब व्यापारियों की जो बैठक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर पर हुई थी उसी में संजय सिंह द्वारा चंदे का चैक लिया गया था । उसी के बाद उन्हें गिरफ्तार कर जांच एजेंसी ने पांच दिन का रिमांड ले लिया । दिनेश को उनका करीबी माना जाता है। आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी के एक सांसद का बेटा भी सरकारी गवाह बन गया है। इस बहुचर्चित मामले का सबसे बड़ा पेच ये है कि करोड़ों के लेन देन का आरोप होने के बावजूद अब तक न तो किसी के पास से बड़ी रकम बरामद हुई और न ही किसी को पैसा मिलने का प्रमाण सामने आया है। अरोड़ा द्वारा किए खुलासे में आम आदमी पार्टी को शराब व्यापारियों से चंदा मिलने की बात कही गई है जिसके बाद ईडी अब पूरी पार्टी पर शिकंजा कसने की तैयारी में है । बात तो श्री केजरीवाल की गिरफ्तारी की भी होने लगी है। इस घोटाले के तार दिल्ली से दक्षिण भारत तक जुड़े हुए बताए जा रहे हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. सी. राव की बेटी से भी ईडी पूछताछ कर चुकी है। इस मामले में कांग्रेस की भूमिका ढुलमुल है। शुरुआत में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ने केजरीवाल सरकार पर खुलकर आरोप लगाए । श्री सिसौदिया की गिरफ्तारी पर भी कांग्रेस नेताओं ने खुशी व्यक्त की थी किंतु श्री सिंह के पकड़े जाने का पार्टी नेता वेणुगोपाल ने विरोध किया है। जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार ने अनेक कांग्रेस नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया है। राजनीति और जांच एजेंसियों की कार्रवाई से हटकर देखें तो केजरीवाल सरकार की शराब नीति में भ्रष्टाचार से दिल्ली की आम जनता को कुछ लेना देना नहीं है किंतु उसके अंतर्गत शराब दुकानों की संख्या दोगुनी हो गई और एक बोतल के साथ एक मुफ्त जैसे आकर्षक ऑफर देते हुए शराब पीने के प्रति लोगों को आकर्षित किया जाने लगा । स्कूल और धर्म स्थलों तक के पास शराब दुकानें खोल दी गईं। इसे लेकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के समर्थक भी नाराज हैं। आम जनता को इस बात पर हैरानी है कि पार्टी ने एक तरफ तो मोहल्ला क्लीनिक और सरकारी शालाओं के उन्नयन जैसा जनहितकारी काम किया वहीं दूसरी तरफशराब दुकानों की संख्या बढ़ाकर लोगों के स्वास्थ्य के साथ ही समाज का वातावरण खराब करने का इंतजाम कर दिया। मुख्यमंत्री सहित आम आदमी पार्टी के तमाम नेता ये सफाई तो देते हैं इस नीति में किसी भी तरह का भ्रष्टाचार नहीं हुआ और प्रदेश सरकार को राजस्व का घाटा होने की बात भी तथ्यहीन है। उसके इस दावे की सच्चाई तो अदालत में ही तय होगी किंतु ये कहना कतई गलत न होगा कि ये नीति श्री केजरीवाल और श्री सिसौदिया के साथ ही आम आदमी पार्टी की छवि के पूरी तरह प्रतिकूल थी। नैतिक दृष्टि से यह बहुत ही गलत फैसला था। जिसे सही साबित करने के बजाय यदि श्री केजरीवाल और उनके सहयोगी जनता से क्षमा याचना कर लेते तो उनके प्रति जनता के मन में सम्मान और बढ़ता । लेकिन बजाय ऐसा करने के वे भाजपा, प्रधानमंत्री, सीबीआई और ईडी के विरुद्ध आंय- बांय बकते रहे। श्री सिंह ने अपने घर पर ईडी का स्वागत किए जाने के पोस्टर लगा रखे थे। श्री केजरीवाल जांच एजेंसी की पैंट गीली होने जैसी शेखी बघारकर उसका उपहास करने से नहीं चूके। गिरफ्तार किए जाते समय श्री सिंह ने प्रधानमंत्री को अडानी का नौकर बताते हुए अपना गुस्सा निकाला । यदि सब कुछ पाक-साफ है तब केजरीवाल सरकार को खुद सीबीआई जांच का प्रस्ताव देना था किंतु वह केंद्र सरकार के विरुद्ध लड़ाई छेड़ने का दांव चलती रही। उसकी ये रणनीति कितनी कारगर होगी ये तो भविष्य बताएगा किंतु फिलहाल उसका संकट बढ़ता जा रहा है। विडंबना ये है कि हमारे देश में जांच और दंड प्रक्रिया कछुआ गति से चलती है जिससे दोष साबित करने में लंबा समय लग जाता है। कई मामलों में तो प्रकरण की गंभीरता भी नष्ट हो जाती है । इसीलिए सत्ता में रहकर भ्रष्टाचार करने वालों के मन में कानून का भय नहीं रहा । और फिर भ्रष्ट नेताओं को अपने निहित स्वार्थ के लिए समर्थन और संरक्षण देने की जो संस्कृति राजनीतिक दलों में व्याप्त है वह भी समस्या को बढ़ा रही है। मसलन लालू प्रसाद यादव को जेल पहुँचाने वाले नीतीश कुमार उनके साथ खड़े हैं। ऐसे ही केजरीवाल सरकार को भ्रष्ट मानने वाली कांग्रेस उनको बचाने में लगी है। एनसीपी छोड़कर एनडीए में आते ही अजीत पवार बेदाग मान लिए गए। इनसे साबित होता है कि राजनेताओं ने खुद को कानून से ऊपर मान लिया है। दिल्ली शराब घोटाले का हश्र क्या होगा ये अभी से कहना कठिन है किंतु इससे आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल भी उस जमात में शामिल हो गए हैं जिसकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फर्क है।