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टीपू सुल्तान को हराने वाले तुकोजीराव होलकर (प्रथम) इतिहास से गायब

By MPHE Oct 29, 2023
टीपू सुल्तान को हराने वाले तुकोजीराव होलकर (प्रथम) इतिहास से गायब
टीपू सुल्तान को हराने वाले तुकोजीराव होलकर (प्रथम) इतिहास से गायब

तुकोजीराव होलकर हमेशा अपने काका सूबेदार मल्हार राव होलकर के का साथ युद्ध क्षेत्रों में सहायक रहे थे मल्हार राव होलकर की मृत्यु के पश्चात मातेश्वरी अहिल्याबाई ने उनको अपना सेनापति बनाया था वह मातोश्री अहिल्याबाई होल्कर व पेशवा के हमेशा विश्वस्त स्वामी भक्त बने रहे इनका जन्म सन् 1723 में हुआ था मातोश्री के शासनकाल में उन्होंने कई युद्धों में भाग लिया था सन 1794 में महादजी सिंधिया की मृत्यु के बाद सूबेदार तुकोजीराव होलकर ही मराठों के प्रमुख थे । मातोश्री के देवलोक गमन के पश्चात इंदौर राज्य प्रभार के सारे अधिकार सूबेदार तुकोजीराव को हस्तगत हुए उनके कार्यकाल में राज्य की दशा पूर्ण संतोषजनक रही। सूबेदार तुकोजी राव होलकर एक कुशल सेनापति और वीर योद्धा थे व साधारण रहन-सहन वाले निर्भय मानी व्यक्ति थे। पेशवा द्वारा उनको 12 भाई वाली सलाहकार समिति में भी स्थान देकर मान दिया गया था।
सन 1785 में टीपू सुल्तान पर चढ़ाई :- टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में एक लाख से अधिक हिंदुओं को मुसलमान बनाया था। वह अपने आप को औरंगजेब, तैमूर, नादिरशाह की तरह मशहूर करना चाहता था और उनका सरताज बनना चाहता था। जिस समय हिंदुओं को
बलपूर्वक मुसलमान बनाने कार्य शुरू हुआ, उसी समय हिंदू समाज में कोहराम और आहकार को सुनकर हिंदू धर्म की रक्षा का बाना धारण करने वाले मराठों में क्रोध की लहर दौड़ पड़ी तथा सभी ने यह निश्चय किया कि टीपू सुल्तान के फन को कुचला जाए। नाना फडणवीस ने सभी मराठा सरदारों को आदेश दिया कि वह धर्मार्थ टीपू सुल्तान पर चढ़ाई करें। पुणे में सभी मराठा सरदारों की विशेष सभा में यह निश्चय किया गया कि धर्मांध टीपू सुल्तान पर चढ़ाई करने के लिए पहले परशुराम भाऊ को भेजा जाए और फिर मार्च 1786 में तुकोजी राव होल्कर ने टीपू सुल्तान के विरुद्ध प्रयाण किया । वह पश्चिमी रास्ते से होकर बादामी की ओर आगे बढ़ेंगे। उन्होंने मई 1786 को बादामी किले को घेरकर 3 सप्ताह तक भयंकर गोलीबारी की और घमासान युद्ध कर उस पर अधिकार कर लिया। 8 जून 1786 को तुकोजी राव होल्कर ने गजेंद्रगढ़ पर अधिकार कर लिया । जल्द ही मराठों ने धारवाड़, सावनुर, अडोनी, गजेंद्रगढ़ तथा बहादुर विंडा युद्ध कर अधिकार कर लिया। युद्ध के बाद टीपू सुल्तान सावानूर की ओर आगे बढ़ा। यहां का राजा मराठों का मित्र था इसलिए तुरंत हरिपंत और तुकोजीराव होलकर सावनुर की रक्षा के लिए पहुंच गए यहां पर मराठों ने छापामार प्रणाली के द्वारा टीपू सुल्तान से युद्ध किया तथा उसे बहुत हानि पहुंचाई। उस युद्ध में खुलकर तोपखाने का प्रयोग किया गया। मराठों ने गुरिल्ला
युद्ध द्वारा टीपू सुल्तान के हजारों सैनिकों को मार डाला। टीपू सुल्तान केवल देखता रह गया। अब उसे यह आभास हो गया था कि वह मराठों से जीत ना सकेगा इसलिए उसने मराठा सरदार हरि पंथ से संधि वार्ता शुरू की। यह उसकी चाल मात्र थी हरि पंत के थोड़ा ढीला पढ़ते ही वह उन पर टूट पड़ा, तब पंत ने मुश्किल से अपनी रक्षा की जिसके बाद एक दिन तुकोजीराव होलकर और पंत ने टीपू सुल्तान पर आक्रमण कर मारकाट मचा दी। इसमें मराठों ने बड़ी संख्या में टीपू सुल्तान के सैनिकों को काट कर फेंक दिया। टीपू सुल्तान की सेना मराठों की मार सहन नहीं कर सकी और रणभूमि से भागने लगी। टीपू की सेना जब मैदान से भागी तो उनके पीछे मराठा घुड़सवार लग गए। उन्होंने टीपू की सेना का भारी विनाश किया। टीपू सुल्तान भी पराजित होकर भागा। उसका पीछा किया उसके डेरों को लूट कर आग लगा दी और बहुत से सैनिकों को कैद कर लिया। टीपू सुल्तान की हार इतनी करारी थी कि वह मोशिलेविय के पास जाकर रुका उसने वहां से संधि की याचना की। वीर तुकोजीराव होलकर के नायकक्तव मैं मराठा रण वाहिनी के भयवश टीपू सुल्तान को महाराष्ट्र मंडल के साथ संधि पर विवश होना पड़ा। अंत में मार्च 1786 को गजेंद्रगढ़ में टीपू और मराठों में हुई संधि के अनुसार टीपू सुल्तान ने पैंतालीस लाख नगद और साठ लाख की संपत्ति देने का वादा किया। इस संधि से मराठों को अधिक लाभ हुआ। उनके खोए इलाके फिर से उन्हें वापस मिल गए और मराठों की सीमा कृष्णा नदी के बजाय तुंगभद्रा नदी तक पहुंच गई। तुकोजी राव होल्कर ने टीपू के दो पुत्रों को इसलिए अपनी कैद में रखा ताकि जब तक टीपू संधि के अनुसार सारे कार्य नहीं करता तब तक उसके दोनों पुत्रों को केंद में ही रखा जाएगा । तुकोजीराव होलकर ने अपनी पैनी तलवार की मार से टीपू सुल्तान का धर्मांधता का भूत उतार दिया। आगे चलकर टीपू के सारे राज्य को मराठों और अंग्रेजों ने जीत लिया जिस मैसूर के हिंदू राजघराने को हराकर टीपू ने गद्दी छीनी थी, उन्हीं मैसूर के राजा को वापस सौंप दिया गया । त्रावणकोर के जिस इलाके को टीपू ने जीता था, वह उसके राजा को वापिस दे दिया गया और टीपू की सत्ता का अंत हो गया। दुर्भाग्य से टीपू सुल्तान को महान बताने वाले हमारे इतिहासकारों ने तुकोजीराव के पराक्रम से नई पीढ़ी से अवगत नहीं कराया।

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