ओडिशा के बिरजा देवी मंदिर में नौ दिनों तक रथयात्रा

ओडिशा के बिरजा देवी मंदिर में नौ दिनों तक रथयात्रा
ओडिशा के बिरजा देवी मंदिर में नौ दिनों तक रथयात्रा

देश का इकलौता शक्तिपीठ जहां महिषासुर मर्दिनी रूप में दो भुजाओं वाली देव

देश का 18 वां शक्तिपीठ, जहां देवी सती की नाभि गिरी थी। आज यहां विरजा देवी मंदिर है, ये जगह है ओडिशा के जाजपुर में ये देश का इकलौता शक्तिपीठ है जहां महिषासुर मर्दिनी रूप में दो भुजाओं वाली देवी हैं। यहां नौ दिनों तक देवी की रथयात्रा निकलती है। आज सुबह से देवी की विशेष पूजा चल रही है और शाम में रथयात्रा निकलेगी। दोपहर 12 बजे से देवी की षोडषोपचार पूजा शुरू होगी जो 3 घंटे चलेगी। इस पूजा के बाद एक घंटा दर्शन बंद रहेंगे। शाम को 6 बजे से रथयात्रा शुरू होगी। जो एक घंटा चलेगी। फिर देवी की महाआरती होगी। इससे पहले सुबह 5 बजे देवी की आरती हुई, 7 बजे देवी को महा स्नान करवाया गया। इसके बाद 7 से 9 बजे तक गर्भगृह में दर्शन हुए। फिर देवी का श्रृंगार हुआ। इसमें देवी को सोने का मुकुट और 3 हार पहनाए गए। वहीं, नवरात्रि के पहले दिन देवी का श्रंगार और पूजा तय समय से देरी से हुआ। रथयात्रा भी रात में शुरू हुई। मंदिर के मुख्य पुजारी देवी प्रसाद पाणी बताते हैं कि 18 तारीख को तकरीबन 20 लाख रूपये का सोने का मुकुट मंदिर को दान में मिलेगा।
नवरात्रि में हर दिन देवी की रथयात्रा रथ पर अष्टधातु की दक्षिण मुखी देवी प्रतिमा विराजित होती है। उसकी पूजा कर रथयात्रा शुरू होती है। देवी के रथ का नाम सिंहध्वज है। ये लाल, सफेद और काले कपड़े से बनता है। ये कपड़े देवी लक्ष्मी, सरस्वती और काली के प्रतीक हैं। इस रथ पर सारथी के तौर पर ब्रह्मा जी को बैठाया जाता है। नवरात्रि के आखिरी दिन अपराजिता पूजा होती है। फिर देवी महिषासुर को मारती हैं। इसके बाद देवी का रथ लखबिंधा मैदान में चला जाता है। जहां आधी रात में देवी को महामारी रूप में पूजा जाता है। इस पूजा में देवी को एक खास तरह के पेय पदार्थ का भोग लगाया जाता है। पूजा खत्म होने के बाद देवी फिर से मंदिर को लौटती हैं। नौ दिन अलग-अलग श्रृंगार, भोग में दाल-सब्जी, खिचड़ी और खीर अर्पित की जाती है। मंदिर के प्रमुख पुरोधा बिधु भूषण कार कहते हैं कि इन नौ दिनों तक हर रोज मां का अलग-अलग शृंगार होता है। मां को दाल सब्जी, कनिका (एक तरह की विशेष खिचड़ी) और खीर का भोग लगता है। तंत्र पीठ होने से रात्रि में ही मां की पूजा शुरू हो जाती है। इसलिए यहां एक दिन पहले ही हर तिथि प ?ती है। इसलिए दशहरा भी एक दिन पहले मनाया जाता है। इस बार यहां 23 तारीख को मनेगा। यहां मां बिरजा अपने पूर्ण ब्रह्मांडीय त्रिमूर्ति रूप त्रिशक्ति यानी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मान्यता है कि मां बिरजा का जन्म पौष यानी त्रिवेणी अमावस्या के दिन हुआ है। उस दिन गायत्री मंत्रों से मां के विशेष अभिषेक परंपरा है। मंदिर के पुजारी जगन्नाथ बताते हैं कि इस शक्तिपीठ पर दक्षिण भारत के लोग अपने पितरों का श्राद्ध करने भी आते हैं, इसलिए यहां पितृ पक्ष की अष्टमी से उत्सव शुरू हो जाता है। जो कि नवरात्रि की नवमी तक चलता है। स्कंद, वायु ब्रह्मांड, ब्रह्म पुराण और महाभारत में इस 18वें शक्तिपीठ में देवी के गिरिजा नाम का जिक्र मिलता है। यह कि वैतरणी नदी के पास है, लेकिन यहां की भाषा में बदलाव के कारण बैतरणी नदी के पास देवी का नाम बिरजा हो गया। ये तंत्र शक्तिपीठ है। इसलिए यहां बलि की परंपरा भी है। 13 वीं शताब्दी में बने मंदिर के गर्भगृह में शेर पर सवार देवी के एक हाथ में भाला और दूसरे हाथ में महिषासुर की पूंछ है। देवी के मुकुट में गणेश, चंद्रमा, वासुकी नाग और शिवलिंग हैं। देवी की मूर्ति 8वीं शताब्दी की मानी जाती है। जाजपुर पुराना हिंदू तीर्थ है, जिसका नाम राजा जजाति केशरी से पड़ा है। जाजपुर को देवी विमला के कारण विमलपुरी भी कहा जाता है। प्रसिद्ध बिराजा देवी मंदिर के कारण जाजपुर बिराज पीठ के नाम से जाना जाता है, जो किसी समय ओडिशा की राजधानी भी रह चुका है। ईएमएस