डोंगरगढ़ के बम्लेश्वरी माता के मंदिर से जुड़ी है दो हजार साल पुरानी कहानी

डोंगरगढ़ के बम्लेश्वरी माता के मंदिर से जुड़ी है दो हजार साल पुरानी कहानी
डोंगरगढ़ के बम्लेश्वरी माता के मंदिर से जुड़ी है दो हजार साल पुरानी कहानी

डोंगरगढ़, एजेंसी। राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में पहाड़ी पर स्थित है मां बम्लेश्वरी का भव्य मंदिर । लगभग दो हजार साल पहले माधवानल और कामकंदला की प्रेम कहानी से महकने वाली इस कामाख्या नगरी में नवरात्रि के दौरान अलग ही दृश्य होता है। डोंगरगढ़ के इतिहास में कामकंदला और माधवानल की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है। लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था। संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की। इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा। मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया। बाद में मदनसेन के पुत्र कामसेन ने राजगद्दी संभाली।
कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे। कला, नृत्य और संगीत के लिए विख्यात कामाख्या नगरी में कामकंदला नाम की राज नर्तकी और थी। प्राचीनकाल में यह स्थान कामावती नगर के नाम से विख्यात था। माधवानल जैसे संगीतकार थे। एक बार दोनों की कला से प्रसन्न होकर राजा ने माधवानल को अपने गले का हार दे दिया। माधवानल ने इसका श्रेय कामकंदला को देते हुए वह हार उसको पहना दिया। इससे राजा
ने अपने को अपमानित महसूस किया और गुस्से में आकर माधवानल को राज्य से बाहर निकाल दिया। इसके बावजूद कामकंदला और माधवानल छिप छिपकर मिलते रहे। एक बार माधवानल उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में गए और उनका मन जीतकर उनसे पुरस्कार स्वरूप कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही। राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रेम की परीक्षा ली और दोनों को खरा पाकर कामकंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया। राजा के इन्कार करने पर दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया। एक महाकाल का भक्त था तो दूसरा
विमला माता का दोनों ने अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान किया तो एक ओर से महाकाल और दूसरी ओर भगवती विमला मां अपने-अपने भक्तों की सहायता करने पहुंच गए। युद्ध के दुष्परिणाम को देखते हुए महाकाल ने विमला माता से राजा विक्रमादित्य को क्षमा करने की प्रार्थना की और कामकंदला और माधवानल को मिलाकर वे दोनों अंतध्यान हो गए।
ऐसे पहुंचे: राजनादगांव से 35 व राजधानी रायपुर से यह 105 किलोमीटर दूर है। हावड़ा-मुंबई रेलमार्ग से भी यह जुड़ा हुआ है। यहां रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।